ये आशिक़ी ले डूबी तुम्हें
जिसको तुम इश्क़ कहते हो, वो और क्या होता है? किसी की खुशबू, किसी की अदाएँ, किसी की बालियाँ — यही तो है। ये न हो तो कौन-सा इश्क़? किसी की खनखनाती हँसी, किसी की चितवन, किसी की लटें, किसी की ज़ुल्फ़ें, ये सब क्या हैं? ये इन्द्रियों पर हो रहे आक्रमण हैं। तुम ऐसे गोलू हो कि तुम आक्रमण को आमन्त्रण समझ बैठते हो।
बड़े ख़ास लोग हैं हम। आक्रमण को आमन्त्रण समझना माने कि — जैसे तुम्हें पीटा जा रहा हो, और तुम सोच रहे हो कि तुम्हारा…