युवा अपने सपने पूरे करें या समाज की उम्मीदें?

समाज तुमसे जो भी उम्मीदें बांधता है वो इसलिए ना ताकि समाज का हित हो सके। तुम्हें अगर पता हो कि हित माने क्या तो स्वेच्छा में और सामाजिक प्रथा या सामाजिक दबाव में कभी कोई संघर्ष, कभी कोई अंतर्विरोध उठेगा ही नहीं।

समाज के और व्यक्ति के हितों में भेद और टकराव आते ही तब हैं जब दोनों को ही अपने-अपने हितों की परिभाषा स्पष्ट ना हो। अगर हित की परिभाषा स्पष्ट है तो वैयक्तिक हित और सामाजिक हित बिल्कुल एक हो जाते हैं।

जहाँ कहीं भी आपको ये दिखाई देता हो कि आप अच्छा करो अगर तो उससे समाज का घाटा होता है तो समझ लेना आप जो कर रहे हो वो आपके लिए भी अच्छा नहीं है। और समाज आपसे कुछ ऐसा करने को कह रहा है जिसमें समाज की तो बेहतरी है और आपका घाटा है तो समझ लेना की समाज आपको जो करने को कह रहा है उसमें समाज की भी बेहतरी नहीं है। अगर आध्यात्मिक जागृति होगी तो व्यक्ति का हित और समष्टि का हित साथ-साथ चलेंगे।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org