युद्ध का अर्थ क्या?

लड़ाई की परिभाषा समझो। तुम उधर को जा रहे हो जिधर तुम्हें जाना ही है, और उस रास्ते में कोई बाधा खड़ी है। उस बाधा को पार करने की प्रक्रिया को युद्ध कहते हैं।

तुम्हें ऊपर चढ़ना है, सड़क तक जाना है, अब बीच में पहाड़ है, तो चढ़ाई को युद्ध बोलेंगे — ये युद्ध की वास्तविक परिभाषा है। लेकिन युद्ध की परिभाषा वास्तविक हो, इसके लिए तुम्हें अपनी वास्तविक मंज़िल तो पता होनी चाहिए ना, कि — “मैं कहाँ को जाने के लिए युद्ध कर रहा हूँ? मैं किधर को जाना चाहता हूँ, और रास्ते में बाधा पा रहा हूँ?”

अगर सही जगह जाना चाहते हो, और रास्ते में बाधा है, और फ़िर तुम युद्ध कर रहे हो, तो धर्मयुद्ध है। और अगर गलत जगह जाना चहते हो, और रास्ते में जो बाधा है उससे लड़े जा रहे हो, तो क्षद्मयुद्ध है।

धर्मयुद्ध तो होना ही चाहिए। लेकिन धर्मयुद्ध सिर्फ़ वही कर सकता है जिसे अपना भी पता है और अपनी नियति का भी, अपनी मंज़िल का भी। जब हमें अपना नहीं पता होता है, तो हम किसी भी मूर्खतापूर्ण जगह पहुँचने के लिए दुनिया से उलझ जाते हैं। वो बेकार का युद्ध है। वो अपनी भी ऊर्जा, और दूसरों की भी ऊर्जा और समय का क्षय है।

एक बार जान लो कि कहाँ पहुँचना ज़रूरी है, फिर उसके रास्ते में जो भी रुकावट आए उससे हार ना मानना — ये धर्मयुद्ध है।

तुम्हें पता है कि सुबह-सुबह खेल के मैदान पहुँचना ज़रूरी है, और तुम्हारा शरीर साथ नहीं दे रहा, और नींद है। अब वक्त आ गया है धर्मयुद्ध का। हाँ इसमें धर्मयुद्ध है, क्योंकि कुछ है जो तुम्हें सत्कार्य से रोक रहा है। जो भी कुछ तुम्हें सही करने से रोके…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org