यहाँ जीत-हार मायने नहीं रखती
प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, आपने मिशन इंपॉसिबल (असंभव लक्ष्य) की बात की। मैं जब आज तीन दिन से ट्रेन में चला आ रहा था, तो मैं सोच रहा था कि, “मैं ये क्यों कर रहा हूँ? मुझे पता है कि ये लड़ाई तो हारी हुई लड़ाई है, कुछ कर नहीं सकते इसमें। फिर दुःख भी है। तो करें क्या? इतनी भी हिम्मत नहीं होती कि आत्महत्या ही कर लें। मरने से भी डर लगता है, तभी यहाँ आते हैं।”