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मज़े छुपा जाओगे, मुझे बस मनहूस ख़बरें ही सुनाओगे?
पुरानी ज़िन्दगी जैसी भी है, उसमें क्यों लौटते हो बार-बार? कुछ तो मज़ा आ ही रहा होगा। मज़ा मारने के लिए दुनिया है, वहाँ पे तुम्हारी शकल हंसती-मुस्कुराती चलती है। और मेरे सामने एकदम मनहूसियत छुआते बैठ जाते हो। अरे भाई जब ज़िन्दगी मज़े में चल रही है तो काहे के लिए अध्यात्म को छेड़ते हो? जो मान लेगा कि बढ़िया नहीं चल रही है उसकी चलनी बंद हो जाएगी। फिर नई ज़िन्दगी शुरू होगी।
मैं बता देता हूँ तुम यहाँ क्यों आते हो, तुम आते हो अपनी बढ़िया चल रही ज़िन्दगी को थोड़ा और बढ़िया बनाने के लिए। तुम्हारी पहले से ही बढ़िया चलती गाड़ी में अध्यात्म तुम्हारे लिए एक ऐक्सिसरीज़ की तरह है।
अध्यात्म चलती गाड़ी को रोक देने का और तुम्हें कोई और विमान दे देने की जगह है। जब आदमी अपनी तरफ से जितने उपाय कर सकता है, कर लेता है और देख लेता है की ये उपाय नहीं चलने के, तब वो अपनी चलती हुई गाड़ी को त्यागता है। अध्यात्म तो देखो तुम्हारे किसी एक काम या ज़िन्दगी के किसी एक हिस्से पर रौशनी नहीं डालेगा। अध्यात्म तो गंगा स्नान की तरह है।
कुछ भी बचाने की कोशिश मत करो। और समस्याओं के प्रकट होने का इंतजार मत करो। अपनी ईमानदारी को अपना दोस्त बनाओ।
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