मौत याद रखो, मौज साथ रखो
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मेरी प्रवृत्ति कुछ ऐसी है कि ज़्यादातर समय मेरा डर में ही व्यतीत होता है। डर मतलब जो अभी है वो खो जाने का डर, कुछ अनहोनी हो जाने का डर। कृपया इस समस्या से उभरने के लिए कोई मार्गदर्शन दिखाएँ।
आचार्य प्रशांत: डर कभी भी झूठा नहीं होता। डर जो कुछ कह रहा होता है वो बात होती तो ठीक ही है न? इस मामले में डर बड़ा सच्चा जंतु है।