मौत नहीं, अनजिया जीवन है पीड़ा
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कोई है जिसका जीवन में बड़ा गहरा स्थान था। एक दिन आता है जब वो नहीं रहता, अब मन पर बड़ी गहरी चोट पड़ती है, मन रो उठता है और वो निशान मन पर ऐसा गहरा पड़ता है कि फिर जीवन कभी उस निशान से मुक्त नहीं हो पाता। एक याद है जो हमेशा साथ ही रहती है, एक छिन जाने का अहसास। कुछ था, जो मुझसे छिन गया और उसकी गहरी पीड़ा रहती है, बहुत गहरी पीड़ा।
हममें से कोई ऐसा नहीं है, जिसके मन में वो पीड़ा ना हो, हममें से कोई ऐसा नहीं है जो पूर्णत: स्वस्थ हो। हममें से कोई ऐसा नहीं है जिसके जीवन से कभी कुछन कुछ मधुर छिना नहीं है।
क्या है प्रेम? प्रेम जीवन भर किसी के साथ रहने की कामना का नाम नहीं है। हालांकि हमने प्रेम ऐसा ही देखा है और स्वाभाविक-सी बात है कि मन में ये बात उठती भी है कि जो है, वो सदा बना रहे, कभी हमसे छिने ना, कभी हमारे जीवन से जाये ना। जिससे हमारा प्रेम है, वो समय के अंत तक हमारे साथ रहे, ये कामना उठती है। पर ठीक-ठीक बताना, क्या ये कामना प्यार के क्षण में उठती है? जब तुम पूरे तरीके से किसी क्षण में डूबे हुए हो, क्या कभी इच्छा उठती है? क्या उस क्षण में, जब तुम डूबे हुए हो, तब ये इच्छा उठती है कि कहीं ये खत्म तो नहीं हो जायेगा, काश ये हमेशा चलता रहे? ये इच्छा उस क्षण में तो नहीं उठ सकती। मतलब जब प्रेम है, वाकई है, उस समय प्रेम को उम्र देने की कोई इच्छा नहीं होती। उस समय वो क्षण ही काफ़ी होता है, तुम्हें और समय नहीं चाहिए होता। उस क्षण की बात कर रहा हूँ, जब तुम ये नहीं सोच रहे होते कि काश ऐसा ही सदा चले, क्योंकि तुम्हारे पास सोचने की फुर्सत ही नहीं होती, तुम डूबे हुए होते हो उस क्षण में और तब वो काफ़ी होता है, तब ऐसा कोई विचार ही नहीं होता कि ये हमेशा ही रहे। उसको एक स्थायित्व देने की कोई इच्छा नहीं होती। स्थाई रहे, ऐसी बात नहीं आती। वो बात तब आती है जब प्रेम उपलब्ध नहीं होता। जब प्रेम उपलब्ध नहीं होता तब ये इच्छा उठती है कि मिलें और समय गुज़ार सकें।
कोई निकट का, कोई प्यारा हमसे छिनता है, हम ख़ूब रोते हैं, ज़ोर-ज़ोर से रोते हैं। हम इसलिए नहीं रोते हैं कि प्रेम था। क्योंकि जब प्रेम है तब तो ये विचार ही नहीं होता कि अंत तक ऐसा ही रहे।हम रोते इसलिए हैं क्योंकि कुछ अधूरा छूट गया, कुछ अनचखा रह गया, एक अतृप्ति रह गई। वो अतृप्ति है जो हमें रुलाती है। वो जो अनजिए क्षण हैं, वो रुलाते हैं हमें। प्रेम नहीं रुलाता क्योंकि प्रेम तो पूरा होता है। उसमें कुछ अधूरा है ही नहीं तो कामना कैसी?
रुलाती हमें हमारी अतृप्तियाँ हैं, हमारा अधूरापन है। और ऐसा ही तो होता है न, जब तक जीवित व्यक्ति हमारे सामने है, तब तक हम पाते हैं कि हम पूरे तरीके से उसके निकट नहीं हो रहे हैं। एक दूरी बना रखी है, मन में धारणाएँ हैं, कुछ-न-कुछ अहंकार है जिसके कारण दूरी है…