मौत के राज़

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कुछ मुद्दे हैं जिनपर आप पिछले दस साल से बोल रहे हैं, जैसे — आत्मा, चेतना, मन, मृत्यु, पुनर्जन्म। हाल ही में बातचीत सीरीज़ (श्रंखला) के माध्यम से आपने इनपर स्पष्टता भी दी है, फिर भी कई लोग हैं जो एक ही सवाल बार-बार घुमाकर अन्य तमाम माध्यमों से हम तक पहुँचा रहे हैं। वो इन बातों को या तो समझ नहीं पा रहे हैं या समझना चाहते नहीं हैं। जैसे उदाहरण के तौर पर आपने मौत के विषय में कल ही बात की थी। अब कितने सारे लोग हैं जो फोन कॉल के माध्यम से, कमेंट्स के माध्यम से और अन्य माध्यमों से हम तक यह बात पहुँचा रहे हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है कि देह मर जाए और फिर भी मेरा कुछ है जो मौत के आगे ना जाए? तो आप ज़रा मौत के विषय पर एक आख़िरी स्पष्टता दे ही दीजिए।

आचार्य प्रशांत: जिसको हम जीवन बोलते हैं, वह क्यों है? हम बोलते हैं — मनुष्य जीवित है, जीव जीवित है, वह जीवन क्या है पहले यह समझें।

प्रकृति है, यह सब जो पूरा बिखरा हुआ संसार है, जो कुछ भी दिखाई देता है वह सब प्रकृति है; जड़, चेतन। इसी प्रकृति का एक तत्व, एक एलीमेंट होता है — अहं वृत्ति, आई टेंडेंसी। प्रकृति में जो चीज़ें हैं वह ‘आई’ नहीं बोल रही हैं। यह (पेन) ‘आई’ नहीं बोल रहा, वह गिलास ‘आई’ नहीं बोल रहा। इनमें से कोई भी नहीं कहता ‘मैं’ या ‘अहं’। तो जो ना बोले ‘अहं’ वह कहलाता है — जड़, क्या? इंसेंटीएंट, जड़, वह जड़ हो गया है। उसी प्रकृति में एक ऐसा तत्व भी है जो बोल रहा है ‘आई’, ‘अहं’, उसको क्या बोलते हैं? अहं वृत्ति। उसे बोलते हैं — अहं वृत्ति, आई टेंडेंसी। वह सिर्फ़ एक वृत्ति है वस्तु नहीं, यह स्पष्ट समझो।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org