मौत का डर सताता है?
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प्रश्नकर्ता: सात साल पहले मेरे परिवार में एक दुर्घटना हुई थी। मेरी मम्मी और मेरे भाई की मृत्यु हो गई। मेरे मामा जी गाड़ी चला रहे थे तो मामा जी को नींद आ गई थी। मामा जी तो ठीक हैं, उनको इतनी ज्यादा कुछ चोट नहीं लगी मगर मेरी मम्मी और मेरा भाई नहीं रहें। तो मेरा प्रश्न यह है कि उनका समय इतना था या मेरे मामा जी की गलती की वजह से यह सब हुआ?
आचार्य प्रशांत: देखिए, इन बातों में कार्य-कारण का सिद्धान्त बहुत सफाई से नहीं चलता। आप कार्य-कारण सम्बंध ढूँढ रही हैं। यह होता है, खासतौर पर जब घर में कोई दिवंगत हो गया हो न तो उसको साइकोलोजी में कहते हैं कि साइकोलोजिकल क्लोज़र के लिए कार्य-कारण सम्बन्ध चाहिए होता है, नहीं तो मन में क्लोज़र नहीं होता। वह आप चाह रही हैं लेकिन मृत्यु का कोई कारण नहीं होता। मृत्यु का आप कारण पूछेंगी तो कारण जन्म है। जहाँ कहीं मृत्यु का कारण साफ दिखाई भी पड़ रहा हो उस कारण के पीछे और भी कारण होंगे, उनके पीछे और कारण होंगे, फिर और होंगे। तो आप किसी कारण पर निश्चित रूप से अँगुली रख कर नहीं कह पाएँगी कि यह आखिरी कारण है।
तो यह तो चक्र है जीवन-मरण का, इसमें जो आया है उसे जाना है, बाकी हम अपनी मानसिक, साइकोलोजिकल सुविधा के लिए, क्लोज़र के लिए कोई कारण ढूँढ लेते हैं। आप डॉक्टर के पास जाएँगी तो वह कारण बता देगा, वह कह देगा उदाहरण के लिए कि ब्रेन हैमरेज हो गया था। उसके पास कारण है। अब आप उसके पीछे का कारण जानना चाह रही हैं। आप जान नहीं पा रहीं कि मामा जी की गलती है या उनका वक़्त पूरा हो गया था। मान लीजिए आपको वह कारण भी पता चल गया, मान लीजिए मैं कह दूँ मामा जी की गलती है तो मामा जी की गलती का क्या कारण है? फिर उसका क्या कारण है? उसका क्या कारण है? कारण कुछ नहीं मिलेगा। अंततः यही मिलेगा कि आए हैं तो जाना है। ठीक है न? आए हैं तो जाना है, कुछ-न-कुछ वजह हो जाती है, कुछ-न-कुछ बहाना है।
कोई वजह वास्तविक नहीं होती। कोई भी वजह वास्तविक नहीं होती, भले ही आप यह देख लें कि किसी ने किसी को गोली मार दी। तो आप कहेंगी यहाँ तो कारण पता है, इस व्यक्ति की मृत्यु गोली लगने से हुई है, हमें कारण पता है। जिसने गोली मारी उसने क्यों मारी? उसका कारण बताइए। फिर उस कारण का कारण बताइए। हमें क्या पता है? तो यह जो कारण की खोज है यह वास्तव में स्वयं को दिलासा देने का प्रयास है, वह दिलासा आपको ऐसे नहीं मिलेगा।
आपका पूरा अधिकार है कि आप शांति माँगे। दुखद घटना ऐसी घटती है, वह मन पर घाव छोड़ जाती है, मन अशांत रहता है। आपका पूरा अधिकार है कि आप शांति माँगे पर वह शांति आपको कारण खोज कर नहीं मिलेगी। वह शांति तो अब आपको तभी मिलेगी जब आप अपने जीवन में किसी सार्थक काम में डूब जाएँ प्रतिपल। और कोई तरीका नहीं है। अन्यथा कोई आकर के आपको एक पूरी कहानी भी सुना…