मोटिवेशन, सकाम कर्म, और बेईमानी
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कल मैं एक मीटिंग में था और जो सज्जन मेरे सामने थे उन्होंने बात-बात में ऐसे ही, ज़रूरत नहीं थी, उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता के जो दो मूल शब्द हैं — सकाम कर्म और निष्काम कर्म, उनका प्रयोग ऐसे ही कर दिया हवा में। मैं ये सोच रहा था फिर, कि अगर विज्ञान से सम्बंधित ऐसी कोई बात होती तो वो हवा में ऐसे शब्दों को नहीं उड़ा पाते।