मोटिवेशन, सकाम कर्म, और बेईमानी

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, कल मैं एक मीटिंग में था और जो सज्जन मेरे सामने थे उन्होंने बात-बात में ऐसे ही, ज़रूरत नहीं थी, उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता के जो दो मूल शब्द हैं — सकाम कर्म और निष्काम कर्म, उनका प्रयोग ऐसे ही कर दिया हवा में। मैं ये सोच रहा था फिर, कि अगर विज्ञान से सम्बंधित ऐसी कोई बात होती तो वो हवा में ऐसे शब्दों को नहीं उड़ा पाते।

मोटिवेशन का भी जो पूरा बाज़ार है वो भी ऐसा ही है कि एक तरीके से, खड़े होकर, दूसरे की आँखों-में-आँखे डालकर, हाथों को हिलाकर कुछ भी तेज़-तेज़ बोल दो और लोग अच्छा फील (महसूस) करने लग जाते हैं। क्या कोई आपको मोटीवेट करके मैथ्स (गणित) का कोई प्रॉब्लम हल करा सकता है?

आचार्य प्रशांत: नहीं, उसके लिए बैठकर मेहनत करनी पड़ेगी और लम्बे समय तक मेहनत करनी पड़ेगी। उसके लिए एक झटके वाला मोटिवेशन काम नहीं आता। उसके लिए आपको रियलाइज़ेशन चाहिए। रियलाइज़ेशन ही आपको बहुत लम्बे समय तक, लगातर चला सकती है। मोटिवेशन आपको एक किक देता है, एक स्पाइक देता है। उसके आगे फिर आप दोबारा शिथिल पड़ जाते हो।

ये बड़ी त्रासदी है कि आप साइंस (विज्ञान) के किसी टर्म का यूँही हल्का, कैजुअल प्रयोग नहीं कर सकते। पर अध्यात्म में जो गूढ़ सिद्धांत हैं या शब्द हैं उनका इस्तेमाल हम यूँही करते रहते हैं। हमें ऐसा लगता है कि हमें इनका मतलब पता है।

आप अपनी रोज़मर्रा की बातचीत में आइंस्टीन को या मैक्सवेल या शोर्डिंजर को लेकर नहीं आओगे। लेकिन अभी जैसा तुमने कहा कि निष्काम कर्म, सकाम कर्म यूँही बोल दिया। जबकि जितना मुश्किल है शोर्डिंजर को समझना…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org