मैं ज़रूरी नहीं हूँ, हमारा काम ज़रूरी है

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मेरा प्रश्न और मेरी समस्या यह है कि पहले जितना डर था मेरे अंदर, पहले से कम हो गया है लेकिन अब थोड़ा अलग तरीके का डर बना रहता है। डर ये रहता है कि- मतलब मैं संस्था में रहना चाहता हूँ और साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहता हूँ लेकिन अंदर एक डर रहता है कि न जाने कब संस्था से बाहर हो जाऊँगा, ऐसा डर बना रहता है। वीडियो तो बनाते हैं साथ में, बाहर का जब आकलन करते हैं तो आखिर में घूम-फिर के पता चलता है कि आचार्य जी के अलावा और कुछ नहीं है दुनिया में, मतलब आप हीं ‘सार’ दिखते हैं पूरी दुनिया में, तो आपसे मैं यह पूछना चाहता हूँ इस रास्ते पर मैं कैसे और आगे बढ़ता रहूँ?

आचार्य प्रशांत: नहीं, देखो ज़मीन की बात करो! तुमको अगर पता ही नहीं होगा कि दुनिया क्या चीज़ है? तो फिर तुम्हें ये भी नहीं पता होगा कि उस दुनिया में, इस संस्था की, इसके काम की अहमियत क्या है? ये सब बहुत सतहीं बातें हैं कि- “मैं दुनिया को देखता हूँ और मुझे लगता है कि इस दुनिया में आपके अलावा कोई है नहीं।” ऐसा कुछ नहीं है। दुनिया में बहुत लोग हैं जो अच्छा काम कर रहे हैं, दुनिया में न जाने कितने क्षेत्र हैं, उन में काम करने वाले लोग भी हैं, ऐसा कुछ नहीं है कि आचार्य जी के अलावा कोई है नहीं। हाँ, दुनिया में बहुत कुछ है, जो गड़बड़ भी है, जो गड़बड़ है वो तुम्हें साफ-साफ पता होना चाहिए, वो जितना तुमको साफ-साफ पता होगा, उतना ज़्यादा तुम्हें अपने काम पर भरोसा होगा और तुम्हें ये सफाई रहेगी, ये प्रेरणा रहेगी कि तुम्हें ये काम आगे बढ़ाना है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org