मैं ज़रूरी नहीं हूँ, हमारा काम ज़रूरी है
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मेरा प्रश्न और मेरी समस्या यह है कि पहले जितना डर था मेरे अंदर, पहले से कम हो गया है लेकिन अब थोड़ा अलग तरीके का डर बना रहता है। डर ये रहता है कि- मतलब मैं संस्था में रहना चाहता हूँ और साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहता हूँ लेकिन अंदर एक डर रहता है कि न जाने कब संस्था से बाहर हो जाऊँगा, ऐसा डर बना रहता है। वीडियो तो बनाते हैं साथ में, बाहर का जब आकलन करते हैं तो आखिर में घूम-फिर के पता चलता है कि…