मैं दूसरों से इतना प्रभावित क्यों हो जाता हूँ कि उन्हीं की तरह बर्ताव करने लगता हूँ
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प्रश्नकर्ता: मैं दूसरों से इतना प्रभावित क्यों हो जाता हूँ? इतना कि मैं दूसरों की तरह सोचने लगता हूँ, उन्हीं की तरह, जैसा वो चाहते हैं, करने लगता हूँ।
आचार्य प्रशांत: बैठो। कुछ विशेष गड़बड़ नहीं है। कोई ख़ास दिक्क़त नहीं है। क्या नाम है तुम्हारा?
प्रश्नकर्ता: अनुराग।
आचार्य जी: बैठो अनुराग। अनुराग कह रहे है कि दूसरों से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाता हूँ, उन्हीं की तरह सोचने लगता हूँ, और उन्हीं की तरह करना भी शुरू कर देता हूँ। तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?
प्रश्नकर्ता: अपने जो विचार हैं, वो लुप्त हो जाते हैं।
आचार्य जी: तुम मान रहे हो कि कुछ है जो अपना है। वो अगर अपना हो ही ना? तुम प्रभावित हो जाते हो एक आदमी की बात से। दूसरे आदमी की बात आयी, उसने पहले आदमी की बात को काट दिया। एक बात ने दूसरी बात को काट दिया, प्रभाव ने प्रभाव को काट दिया। इसमें तुम्हारा अपना था ही क्या? जिस बात को तुम कह रहे हो कि कट गयी, वो भी तुम्हारी अपनी कहाँ थी? वो भी तो किसी और का ही प्रभाव था। जिसको तुम कह रहे हो कि मेरे अपने विचार दब जाते हैं, पीछे छूट जाते हैं, दूसरों का प्रभाव हावी हो जाता है, वो विचार क्या पक्का है तुम्हें कि तुम्हारे ही थे? ध्यान से देखो कहीं ऐसा तो नहीं कि वो भी दूसरों का ही प्रभाव हों क्योंकि जो तुम्हारा अपना हो, वो कैसे किसी और के काटे कट जाएगा? वो तो आच्छादित हो ही नहीं सकता, उसको दबा के रखने का कोई तरीका ही नहीं है।वो तो वास्तविक होगा, पूरी तरह से अपना। समस्या ये बिल्कुल भी नहीं है कि दूसरों की बात सुनने के कारण, दूसरों के प्रभाव में आ जाने के कारण, तुम अपने मन की नहीं कर पाते। ये समस्या है ही नहीं। क्योंकि जिसको तुम अपना मन कह रहे हो वो भी घूम-फिर कर है दूसरों का ही। हम जिसको अपना मन कहते हैं, उसको ध्यान से देखो, वो हमारा है ही कहाँ।
मन का मतलब है, मन में जो कुछ भरा हुआ है। उसी का नाम है मन। मन और तो कुछ होता ही नहीं। मन में जो सामग्री भरी हुई है, उसी का नाम मन है। और वो जो पूरी सामग्री मन में भरी हुई है, वो पूरा मसाला, वो मसाला कहाँ से आया है? वो तुमने खुद पैदा किया है? तुम्हारा अपना उत्पाद है? टी.वी. में देख लिया है, अखबारों में पढ़ लिया है, घरवालों ने बता दिया है, शिक्षा ने बता दिया है, दोस्तों-यारों से सुन लिया है। मन में जो कुछ भरा हुआ है वो आया कहाँ से है? मन ने खुद तो नहीं पैदा किया। वो कहाँ से आया है? वो बाहर से आया है और आकर तुम्हारे मन में बैठ गया है। कोई कारण है तुम्हारे पास उसको अपना बोलने का? पर तुम उसको अपना बोल रहे हो क्योंकि अब उसके साथ तुमने एक सम्बन्ध…