मैं तुम्हें प्यार से लूटने आया हूँ!

मैं तुम्हें प्यार से लूटने आया हूँ!

🔥 “मैं तुम्हें प्यार से लूटने आया हूँ” 🔥

देश को आज़ाद हुए 4 साल ही हुए थे, और 75% आबादी कृषि संबंधित कार्यों से जीवनयापन कर रही थी।

लेकिन एक बहुत विचित्र बात थी : कृषि क्षेत्र में काम कर रहे अधिकतर लोगों के पास अपनी ज़मीन ही नहीं थी।

देश आज़ाद हो चुका था, लेकिन देश का आम-आदमी किसी बड़े जमींदार के खेत में गुलामी का जीवन ही बिता रहा था।

इन्हीं परिस्थितियों के बीच साल 1951 (आज के) तेलंगाना प्रदेश के एक गाँव में पहुँचे गाँधी जी के एक शिष्य। जहाँ दलित समाज के 40 परिवार रहते थे। वे चाहते थे कि उन 40 परिवारों को कुल 80 एकड़ ज़मीन मिले , जिससे वे अन्न उगा सकें और अपना पेट पाल सकें।

इस माँग को लेकर गाँधी जी के शिष्य, उन्हीं की तरह, एक प्रकार की निश्छलता के साथ उस क्षेत्र के सबसे धनी ज़मींदारों के पास पहुँच गए।

एक सभा बुलाई, और समाज के सबसे गरीब और सबसे अमीर वर्गों को एक साथ बैठाया, और चर्चा शुरू की।

उनकी बातें सुनकर, श्री वी रामचन्द्र रेड्डी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बीच सभा में खड़े होकर बोला, “मैं इन परिवारों के लिए 100 एकड़ ज़मीन भेंट करना चाहता हूँ।”

और यहाँ से शुरुआत हुई मानव इतिहास की सबसे अनूठी क्रांति की, “भूदान आंदोलन” । और गाँधी जी के जिन शिष्य की हम बात कर रहे हैं, वे हैं — आचार्य विनोबा भावे।

इसी दिन के बाद से विनोबा जी ने देशभर की पदयात्रा शुरू की। और देश के खेतहीन…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org