मैं चुप हूँ

मैं चुप हूँ,
वे सब बोल रहे हैं;
क्या बोल रहे हैं?
हह! अब बोल रहे हैं तो बस –
बोल रहे हैं।
पुरुषार्थ को अकड़, भावना को दुर्बलता
तथा चरित्र को फिज़ूल बता,
क्या,
वे अपनी पोल भी नहीं खोल रहे हैं?

~ आचार्य प्रशांत (1995)

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org