मैं किसी भी नियम पर चल क्यों नहीं पाता?
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जिनको तुम कह रहे हो कि ‘अपने’ नियम बनाता हूँ, वो भी वास्तव में तुम्हारे नियम नहीं हैं, वो बाहर से आये हुए नियम हैं, संस्कारित नियम हैं। तो उनपर तुम चलोगे तो सही, पर तभी तक चलोगे जब तक कोई और आ कर तुम्हें कुछ और नहीं दे देता। तुमने अभी कुछ देखा, कहीं गये और बहुत प्रभावित हो गये और तुमने अपने लिए एक नियम बना लिया, जो देखा सुना उससे। और दो दिन बाद कोई दूसरा प्रभाव तुम पर आ गया। तो क्या होगा पहले प्रभाव का और क्या होगा उन नियमों का? वो सब तिरोहित हो जायेंगे, कुछ बचेगा नहीं उनमें से।
(बिजली चली जाती है और हॉल में शोर होता है)
अब ये स्पष्ट उदाहरण है कि क्या होता है नियमों का। जब तक रोशनी रही, तब तक तो नियम कायम रहे। पर ज्यों ही एक बाहरी अवस्था बदली तो जितने साँप, छछूंदर छुपे हुए थे बिलों में, वो सब बाहर आ गये। कुछ कीड़े होते हैं जो मात्र अँधेरे में ही निकलते हैं और वो सब निकल पड़े थे।
तो इसलिए नियम कभी प्रभावकारी हो नहीं सकता, क्योंकि दूसरा कुछ है जो निकलने का इंतज़ार कर ही रहा है। स्थितियाँ बदलेंगी और वो निकल पड़ेगा। एक बाहरी स्थिति है रोशनी की, तुम उस पर चल पड़े। दिन है तो तुम दिन के मुताबिक कर रहे थे, पर दिन सदा नहीं रहेगा। रात आयेगी और फिर तुम कहते हो कि मैं वैसे क्यों नहीं चल पा रहा? क्योंकि वो चाल तुम्हारी थी ही नहीं, वो चाल दिन की थी, वो चाल रोशनी की थी। रोशनी गयी, तो चाल भी गयी।
कोई एक व्यक्ति तुम्हारे सामने बैठा है तो तुम एक प्रकार का व्यवहार कर रहे हो, वो व्यक्ति जायेगा तो साथ में वो व्यवहार भी जायेगा। फिर तुम आश्चर्य करोगे कि मेरा व्यवहार बदल क्यों गया? क्योंकि वो व्यवहार तुम्हारा था ही नहीं। वो व्यवहार उस परिस्थिति का था और परिस्थिति गयी, व्यवहार गया।
अभी नया साल शुरू हुआ है। और जब एक जनवरी लगती है तो बहुत सारे लोग अपने लिए नियम बनाते हैं कि इस बार ये करेंगे और वो करेंगे। और 99% जो नियम बनाते हैं वो हफ्ते से ज़्यादा नहीं चलते। पूछो क्यों? क्योंकि वो नियम बनाया गया था एक जनवरी को। तो एक जनवरी को वो नियम बड़ा अच्छा लगता है कि नया साल शुरू हुआ है तो मैं भी कुछ नया शुरू करूँगा, पर एक जनवरी तो गयी और आज है पांच जनवरी। अब आज क्या करूँगा उसका? वो एक जनवरी को शोभा देता था, आज क्या करेंगे? क्योंकि वो नियम तुम्हारा था ही नहीं, वो एक जनवरी का था। जिसे नियम बनाना होगा वो एक जनवरी का इंतज़ार करेगा क्या? पर तुम इंतज़ार करते हो कि नया साल लगे तो कोई नियम बनायें। ऐसा ही है एक प्रेम दिवस, 14 फरवरी, और बहुत होंगे जो जा-जा कर अपना दिल खोल कर रख देंगे कि तुम्हीं प्रेम हो, तुम्हीं जीवन हो, तुम ना हो तो हम हैं क्या, रेगिस्तान, उजाड़। पर वो बातें हैं सारी 14 फरवरी की, और 14 फरवरी…