मैं इकट्ठा क्यों करता हूँ?
साधु गाँठ न बाँधई, उदर समाता लेय ।
आगे पाछे हरि खड़े, जब माँगे तब देय ।।
~संत कबीर
वक्ता: साधु बस उतना ही लेगा जितना उसके उदर में समा जाए, बस उतना ही लेगा। उदर अर्थ सिर्फ़ भूख नहीं और कुछ भी होगा। गाँठ नहीं बांधेगा, आगे पीछे हरि खड़े, जब माँगे तब देय। जिन लोगों को वज़न कम करना होता है, उन लोगों को सलाह दी जाती है कि दिन में कई बार खाओ।
श्रोता: पाँच बार।
वक्ता: हाँ, पांच या सात बार खाओ और कम-कम खाओ। पर ये पाँच बार, सात बार खाने का क्या महत्व है कि ज़्यादा बार खाओ? क्यों?
श्रोता: ‘मेटाबोलिज्म।‘
श्रोता: ‘इकट्ठा ना हो।‘
वक्ता: इसका मानसिक कारण क्या है?
श्रोता: पता नहीं।
श्रोता१: अगर अंतराल पर खाना ना खाया जाए, तो शरीर को लगता है कि मुझे खाना मिल नहीं रहा, तो वो इक्कठा करने लगता है।
वक्ता: ठीक है, आ रही है बात समझ में। ये भरोसा होना ज़रूरी है कि, ‘’जब माँगूंगा, तब मिल जाएगा। जब ये भरोसा होता है, तो आप इकट्ठा नहीं करते।’’ परिग्रह का कारण ही यही है कि आप भविष्य की सोचते हैं। भविष्य की सोचेंगे, तो चिंता तो होगी ही।
कबीर कह रहे हैं कि, ‘आगे पीछे हरि खड़े, जब माँगे तब देय,’ वो गाँठ बाँधता ही नहीं है। उसे लगता है जब माँगूंगा, तब उपलब्ध हो जायेगा। जब लगातार उपलब्ध हो जाना है, तो संचय कर के क्या? हाथ में चाय है ना, जब पीनी होगी तो चुस्की…