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मैंने बड़े आध्यत्मिक लोग देखें हैं
जो बाहर-बाहर से कुछ और जीते हैं
और भीतर कुछ और है।
उनको शायद यही लगता होगा कि
ग्रंथों ने यही तो सिखाया है —
अभिनय करना।
और बहुत गुरु हुए हैं
जिन्होंने भी यही बात कही है।
उन्होंने कहा है,
“जीवन ऐसे जियो
जैसे अभिनय कर रहे हो।”
तो लो भाई,
अभिनेताओं की अब फ़ौज खड़ी है
और असली आदमी कहीं दिखाई नहीं देता।
सब क्या हैं?
अभिनेता।
अब असली आदमी खोजना
मुश्किल है।