मैंने बहुत घिनौने काम किए हैं, मेरा कुछ हो सकता है?
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जीसस कह गए हैं कि “सफरिंग इज़ सिन (दुःख पाप है)”। जो भी कोई पीड़ा में है, दर्द में है, दुःख में कराह रहा है, उसने कहीं-ना-कहीं तो पाप कर ही रखा है। सनातन परंपरा के ग्रंथ जगह-जगह पर कहते हैं कि जो मुक्त होते हैं वो दोबारा जन्म नहीं लेते। जिनकी ज़िन्दगी में कोई कमी रह गई होती है, जो कामनाओं के जाल में रह गए होते हैं, उन्हीं को मनुष्य की देह धारण करनी पड़ती है। तो पापी तो हम हैं ही। बस अंतर ये है कि कुछ ईमानदारी से इस बात को स्वीकार करते हैं कि वो पापी हैं, और बाकियों को बड़ा नाज़ है, गौरव है, फ़क्र है, कि हम तो दूध के धुले हैं, हंस के पंख हैं हम। उनकी वो जाने।
परिवर्तन वास्तविक शुरू ही तब होता है जब तुमको दिखाई दे जाता है कि तुम पापी भर नहीं हो, जैसे तुम बने बैठे हो, तुम पाप मात्र हो। और चमत्कार की बात ये है कि जब तुम स्वीकार कर लेते हो कि तुम पाप मात्र हो, उस क्षण तुम्हारा पुण्य शुरू हो जाता है। पुण्य और पाप से मेरा आशय क्या है? कोई नैतिक आशय नहीं है कि फ़लाना चीज़ करो तो पाप और फ़लाना काम करो तो पुण्य। पाप और पुण्य से मेरा आशय है कि जो कुछ भी तुम्हें तुम्हारे दुःख से और तुम्हारी तड़प से मुक्ति दिला दे, वो पुण्य है, और जो कुछ भी तुम्हारी बेहोशी, अंधेरे, और बेड़ियों को और सघन करता हो, वो पाप है तुम्हारे लिए। पापी सभी हैं, कोई नहीं है जो पापी नहीं है।
ये बहुत अच्छी बात है कि नाम भेजकर, पूरा परिचय-पता बताकर तुम ये स्वीकार कर रहे हो कि तुमने बहुत घिनौने पाप किए हैं। तुमने यहाँ तक ख़तरा मोल लिया है कि मैं अभी लाइव सेशन में तुम्हारा नाम, परिचय सब बोल सकता था, पर तैयार हो तुम कि हजारों-लाखों लोगों को तक भी ये सब बात पहुँच जाए तो पहुँच जाए, लेकिन मुझे अपनी ओर से सब स्पष्ट बता देना है। सुंदर बात है, साहस की बात है। कुछ होगा, कुछ बदलेगा।
मैं ये जानने में उत्सुक भी नहीं हूँ कि तुमने क्या पाप किया है क्योंकि देखो, सारे पाप एक तरह की बेहोशी होते हैं, एक तरह की तंद्रा में होते हैं; एक तरह की नींद है वो, नशा है वो। तुमने अपनी तंद्रा में क्या दुःस्वप्न देख लिया, मैं तुमसे क्या पूछूँ? मुझे रुचि तुमको जगाने में है। ये जानकर मैं करुॅंगा क्या कि तुम अभी जब बेहोश पड़े थे तो तुम कैसे-कैसे सपने ले रहे थे। बेहोश थे, ये जानना काफ़ी है। समझ में आ रही है बात?
जैसे मैं नहीं देख रहा हूँ कि तुमने अतीत में क्या-क्या कर डाला है, वैसे ही तुम ये मत देखो कि तुमने अतीत में क्या-क्या कर डाला है। अगर ये समझ गए हो कि जो कुछ भी कर डाला है उसमें कर्म अमहत्वपूर्ण है, करने वाला महत्वपूर्ण है — और जो करने वाला था वो बिल्कुल अंधेरे में था। देखो, हमें बताया गया है कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं। ये बात ठीक…