मेहनत और सफलता के बावजूद मन असंतुष्ट

आम तौर पर हमारा मानना रहता है कि जिन लोगों को जीवन में सफलता मिलती है वो अपनी नज़रों में ऊँचे होते होंगे। और सफलता की हमारी सामान्य परिभाषा होती है कि आपने एक लक्ष्य तय किया और उसको पा लिया तो आप सफल कहलाएँ। साधारणत: हमें देखने को भी यही मिलता है कि जो लोग जीवन में सफल आदि कहलाते हैं, वो आत्मविश्वास से और आत्मगौरव से बड़े भरे हुए दिखाई देते हैं, दूसरी ओर कुछ लोग जो लक्ष्य बनाते हैं और उस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाते उनमें हम आत्मविश्वास की कमी पाते हैं, उनका सर झुका हुआ पाते हैं और पाते हैं कि वो दूसरों से मूहँ चुराते हैं, खुद को ही लेकर शर्मिंदा रहते हैं।

तुम ईमानदार हो इसलिए तुमने ये बात सामने खोल कर रख दी कि मैं सफल होते हुए भी अपनी नज़रों में उठा हुआ नहीं हूँ और बहुत ऐसे घूम रहे हैं जो अपने आप को नमूना बना कर अपनी पर्दर्शनी लगते हैं, वो दुनिया को दिखाते है कि अगर तुम भी हमारी तरह सफल हो जाओ फिर तुम भी सर तान कर चलोगे।

अपनी नज़रों में आप वाकई ऊँचे सिर्फ़ तब हो पाएँगे जब दो शर्तें पूरी होती हो। पहली शर्त है, काम सही चुनो, जीवन कर्म की ही अनवरत श्रृंखला है, ऐसा नहीं हो सकता कि आपके आत्मगौरव का संबंध आपके कर्म से न हो। इंसान को ये सज़ा मिली हुई है कि अगर वो सही कर्म नहीं करेगा तो वो अपनी ही नज़रों में गिरा हुआ रहेगा, स्वयं से ही असंतुष्ट रहेगा, अपनी ही ज़िंदगी से खफ़ा-खफ़ा रहेगा। कर्म का निर्धारण इतनी ज़्यादा सफाई, सावधानी, ध्यान से करो कि जैसे जीवन मृत्यु का सवाल हो।

दूसरी शर्त है कि उस काम में बिल्कुल आकंठ डूब जाना, अपने आप को उस काम के सुपुर्द कर देना, काम तुम न करो, काम तुम्हें करने लगे, काम तुम्हारे हाथ में न हो, काम तुम्हारे सर पर चढ़ कर बोले, काम तुम्हारा निर्णय नहीं, तुम्हारा नशा बन जाए, काम तुम किसी प्राप्ति के लिए नहीं बल्कि प्रेम में करो।

जो सही काम कर रहे हैं, उनके लिए काम ज़िंदगी है, काम रुकेगा ही नहीं, काम बदलेगा ही नहीं, काम अगर सही है, सच्चा है, तो काम अनंत भी होगा। अपने आप को इतना झोंक दीजिए कि परिणाम की फ़िक्र करने के लिए आप बचे ही नहीं।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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