मेडिटेशन के नाम पर मज़ाक
जीवन मुक्ति के उच्चतम ध्येय को समर्पित करने का नाम है ध्यान। पूरा जीवन ही मुक्ति के उपक्रम में आहुति बन जाए, ये है ध्यान।
ध्येय इतना बड़ा हो कि वो तुम्हारा जीवन ही माँग ले। ध्याता की पूर्ण आहुति, पूरी बलि माँग ले, ये ध्यान है।
ध्यान जीवन के किसी कोने में घटने वाली घटना नहीं हो सकती, ध्यान को जीवन का आधार होना होगा, ध्यान को केंद्र होना होगा। ध्यान पहले आएगा और ध्यान ही ये तय करेगा कि जीवन में क्या-क्या होना होगा इसीलिए वो कोई क्रिया नहीं हो सकती क्योंकि हर क्रिया समय माँगती है। बच्चे हो, तो जाओ करने वाला ध्यान कर लो किसी मैडिटेशन सेंटर से। जीने वाला ध्यान पूरे जीवन की आहुति माँगता है।
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