मृत्यु के बाद क्या होता है?
आत्मा के साथ कभी कुछ नहीं होता।
आत्मा अद्वैत है।
कौन आएगा उसके साथ कुछ करने, जब दूसरा कोई है ही नहीं ?
यात्रा तो हमेशा किसी सीमित वस्तु की होती है, जगत में ही कहीं-से-कहीं तक की होती है, और सीमित गति होती है। और एक सज्जन हुए हैं जो हमें ये भी बता गए हैं कि जगत में जो भी वस्तु यात्रा करेगी, उसकी गति प्रकाश की गति से ज़्यादा नहीं हो सकती। तो ये तो आत्मा के ऊपर भी बाध्यता डाल दी। अगर वो यात्रा करेगी तो उसके ऊपर भी एक नियम लग गया, पर आत्मा के ऊपर तो कोई नियम लगता नहीं।
तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारे दोस्त का क्या होगा। उसका कुछ नहीं होगा, दो दिन रोएगा, फ़िर मौज करेगा पर तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारा क्या होगा, तो यह बेतुकी बात है। तुम अपने आपको जितना जानते हो, उसके नष्ट हो जाने को ही तुम कहते हो — ‘मृत्यु’। तो एक तरफ़ कहते हो कि — “मैं नष्ट हो गया,” दूसरी तरफ़ कहते हो कि- “मेरा क्या होगा?”
ये कैसा सवाल है?
या तो तुमने अपने आपको थोड़ा-भी ऐसा जाना होता, जो अविनाशी होता, फ़िर तुम कहते कि — “मेरे बाद क्या शेष रहेगा?” तो तुक भी बनता। तुमने अपने आप को जितना भी जाना है, वो मृत्युधर्मा है। ठीक?
तुम्हारे पास ऐसा कुछ भी है, जो आग में न जले, जिसे समय न मिटा दे? कुछ है ऐसा, बताओ? जब तुम्हारे पास ऐसा कुछ नहीं है, तुम्हारे ही अनुसार तुम्हारे पास ऐसा कुछ नहीं है, तो बताओ मृत्यु के बाद क्या बचेगा?