मृत्यु का स्मरण, अमरता की कुंजी
साँझ पड़ी दिन ढ़ल गया, बाघन घेरी गाय ।
गाय बेचारी ना मरै, बाघ न भूखा जाए ॥
~ संत कबीर
वक्ता: जीवन का संध्याकाल आता है। स्पष्ट एहसास होता है कि उम्र, अब बीत रही है, और मौत लगातार करीब आती जा रही है।
आदमी का पूरा जीवन ही, क्रमशः बीतते जाने की कहानी रहता है। प्रतिपल हम बीतते जाते हैं, और प्रतिपल, जिसे हम अपना अंतिम क्षण मानते हैं, वो…