मृत्यु का भय कैसे हटे?
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शारीरिक मृत्यु का ख़ौफ़ जाता रहता है जब वो तुम्हारे भीतर मर जाता है जो नाहक ही जिंदा होने का स्वांग करता है।
शारीरिक मृत्यु का डर नहीं है तुमको, घर के भीतर अगर तुम न हो तो घर में आग लगने से डरोगे क्या?
शरीर घर है तुम्हारा, शरीर के मिटने को लेकर इसलिए चिंतित रहते हो क्योंकि तुम शरीर में घुसे बैठे हो, आवश्यक नहीं है शरीर के भीतर अवस्थित रहना।
जब तक तुम शरीर के साथ जुड़े ही बैठे रहोगे, तब तक शरीर की मृत्यु तुम्हें अपनी मृत्यु लगेगी।
शरीर से जुड़ो मत, फिर शरीर की मौत से घबराओगे भी नहीं।
जब कबीर कहते हैं कि मर जाओ तो उनका आशय है, शरीर से हट जाओ, ये वो मृत्यु होगी जो तुम्हें अमर कर देगी और शरीर से तुम चिपके हुए हो तो शरीर की मृत्यु तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी और तुम भलीभाँति जानते हो कि शरीर मृत्युधर्मा है इसलिए जी भी नहीं पाओगे, तुम्हारे सारे कर्मों के पीछे मौत का खौफ रहेगा, वही तुम्हारी प्रेरणा रहेगा।
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