मूल इच्छा के मूल में आओ

इच्छाएँ हजारों होती हैं, पर मूल एक ही होता है, “भीतर की वृत्ति की अपूर्णता।” इच्छाओं के प्रकार अलग-अलग दिख सकते हैं, पर मूल में अपूर्णता ही है। उस मूल तक पहुँचना ज़रूरी है। हालाँकि यात्रा उस मूल तक पहुँचकर रुक नहीं जाती। मूल तक पहुँचने का काम आपका होता है, उसके आगे का काम स्वतः होता है। जो लोग मूल तक की यात्रा करते हैं, उन्हें मूल के आगे का भी कुछ पाता चल जाता है, इसे कहते हैं मूल का मूल।

हम कहते हैं कि हमारे दो केंद्र होते हैं, वास्तविक केंद्र सच्चा और अवास्तविक केंद्र झूठा। झूठे केंद्र तक जाने की जो ताकत दे, वह होता है सच्चा केंद्र। आप अपने झूठ तक पहुँच गए, तो अब और कुछ होना बाकी नहीं रहा। वास्तव में झूठा केंद्र झूठा नहीं है। वह पहले से ही सच्चे केंद्र से उद्भूत है। पहला केंद्र जब छुपा है, तो उसे ही आप झूठा केंद्र का नाम दे देते हो क्योंकि झूठ का तो कोई अस्तित्व होता नहीं है।

मूल का मूल अर्थात् अहम् का मूल आत्मा। वास्तव में आत्मा तक पहुँचने का एक ही मार्ग है और वो है, अहम् में प्रवेश। अहम् से बचकर नहीं जा सकते, हाँ झूठ बोल सकते हो और पीड़ा को झेल सकते हो। अपने विचारों को गहराई से देखिए, यही है अहम् में प्रवेश। जैसे प्रकाश के होने से शेष सारी चीज़ें दिख जाती हैं, पर प्रकाश स्वयं को नहीं देख सकता, उसी प्रकार आत्मा के होने से अहम् को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं, पर आत्मा का दर्शन नहीं होता, अहम् की ही खोज होती है। अपनी गलतियों को पहचानिए, उन्हें स्वीकार कर लीजिए, उनमें प्रवेश कर जाइए, वहीं से सत्य की यात्रा प्रारंभ हो जाएगी। प्रकाश तो सदा मौज़ूद ही है, पर तुम्हें अँधेरा पहले दिखना तो चाहिए। परमात्मा की खोज भी ऐसी है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org