मूल इच्छा के मूल में आओ

इच्छाएँ हजारों होती हैं, पर मूल एक ही होता है, “भीतर की वृत्ति की अपूर्णता।” इच्छाओं के प्रकार अलग-अलग दिख सकते हैं, पर मूल में अपूर्णता ही है। उस मूल तक पहुँचना ज़रूरी है। हालाँकि यात्रा उस मूल तक पहुँचकर रुक नहीं जाती। मूल तक पहुँचने का काम आपका होता है, उसके आगे का काम स्वतः होता है। जो लोग मूल तक की यात्रा करते हैं, उन्हें मूल के आगे का भी कुछ पाता चल जाता है, इसे कहते हैं मूल का मूल।