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मूर्खता है माँसाहार
माँस माँस सब एक है मुर्गी हिरणी गाय
आंख देखी नर खात है, ते नर नरकहि जाय
~ कबीर साहब
माँस सारे एक हैं — मुर्गी, हिरणी, गाय; इसमें मनुष्य और जोड़ लीजिए।
कबीर साहब बात कर रहे हैं आपके और माँस के रिश्ते की।
माँस कहीं से भी आया हो, माँस का अर्थ है ‘देह’। ‘देह’ का अर्थ है ‘संसार’। कबीर साहब हमारे सामने सवाल खड़ा कर रहे हैं कि आपका और माँस का रिश्ता क्या है। दूसरे शब्दों में वह पूछ रहे हैं कि आपका और संसार का रिश्ता क्या है। संसार को भोगने की लालसा ही माँस को भोगने की लालसा बन जाती है। और आवश्यक नहीं है कि माँस का सेवन स्थूल रूप में ही किया जाए।
आप जिस भी रूप में पदार्थ को भोग रहे हैं, वास्तव में वह माँसाहार ही है।
आप किसी की देह के माँस को देखकर मानसिक तृप्ति अर्जित कर रहे हैं, मन ही मन सुख का सेवन कर रहे हैं, तो वह भी माँसाहार ही है। पदार्थ का उपयोग अपनेआप को गहन तृप्ति देने के लिए करना, यह माँसाहार है।
माँसाहार इतना ही नहीं है कि किसी को काटा और उसके शरीर का माँस निकालकर भोग लिया। जब भी कभी आप संसार का, पदार्थ का उपयोग कर अपनेआप को आत्मिक शांति देना चाहते हैं, तो वह माँसाहार है।
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