मुझे बच्चे पैदा करने हैं — इसमें आपको क्या तकलीफ़ है?

मुझे बच्चे पैदा करने हैं — इसमें आपको क्या तकलीफ़ है?

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी प्रणाम, आप बताते हैं कि माँ की ममता नवजात बच्चे की सुरक्षा के लिए होती है और जानवरों में दिखता भी है कि जैसे-जैसे नवजात बच्चे बड़े होने लगते हैं माँ के भीतर से ममत्व खत्म होने लगता है लेकिन इंसान के साथ ऐसा नहीं दिखता। मेरी माँ तो काफी मोह में नज़र आती है जबकि मुझे अब उनसे कोई शारीरिक सुरक्षा नहीं मिलती। इस ममता का क्या कारण है?

आचार्य प्रशांत: इस ममता का कारण यह है कि हमें जो चीज़ मन की ऊँचाइयों से मिलनी चाहिए, चेतना की ऊँचाइयों से मिलनी चाहिए उसे हम वहीं खोजते रह जाते हैं जहाँ से मन की शुरुआत हुई थी। मन की शुरुआत होती है शरीर से।

शरीर ना हो तो चेतना होने वाली नहीं। पर चेतना जैसे-जैसे सशक्त होती है, आगे बढ़ती है, उसे शरीर को छोड़ कर के अपना असली ठिकाना तलाशना होता है। यह छोड़ने में लगता है डर। तो नतीजा यह निकलता है कि उम्र बढ़ती जाती है लेकिन चेतना फिर भी शरीर से ही लिपटी रह जाती है।

जैसे छोटा बच्चा हो कोई, वह अपने पाँव का अंगूठा चूसे कोई बात नहीं। लेकिन वह बड़ा होकर के भी अपने पाँव का अंगूठा चूसे तो बड़ी भद्दी बात है न। हम में से ज़्यादातर लोग ऐसा ही भद्दा जीवन बिताते हैं।

कुछ काम शरीर की कुछ अवस्थाओं में ठीक होते हैं बल्कि शोभा देते हैं। वह काम शरीर की उम्र बढ़ने के साथ, माने चेतना की उम्र बढ़ने के साथ पीछे छूट जाने चाहिए। लेकिन मैंने अभी बड़ी भारी माँग रख दी, मैंने कहा शरीर की उम्र बढ़ने के साथ माने चेतना की उम्र बढ़ने के साथ। मैंने मान ही लिया कि शरीर की उम्र बढ़ने के साथ चेतना की उम्र भी बढ़ती ही है।

ज़्यादातर लोगों में ऐसा होता नहीं। तो उनके शरीर की उम्र बढ़ती जाती है, चेतना की उम्र बच्चों जैसे ही रह जाती है। तो फिर वह बढ़ी हुई उम्र में भी हरकतें वही कर रहे होते हैं जो हरकतें उन्हें बहुत पीछे छोड़ देनी चाहिए थी समय में।

माँ अगर चैतन्य होगी तो जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे वो उससे शारीरिक मोह कम करती जाएगी और बच्चे की आंतरिक उन्नति के लिए तत्पर होती जाएगी। पर माएँ ज़्यादातर चैतन्य होती नहीं, तो जो काम पशुपत होता है वह तो सब माएँ कर लेती हैं क्योंकि वह करने के लिए आपको कोई योग्यता नहीं चाहिए, वह तो आपके पास एक महिला का शरीर है तो वह काम अपने-आप हो जाएगा क्योंकि वह काम बिना मेहनत के हो जाता है।

आपके पास महिला का शरीर है तो आपमें ममता अपने-आप उठेगी; लेकिन आप ममता से आगे जाकर के अपने बच्चे के लिए एक पथ प्रदर्शक बन सके उसके लिए माँ को मेहनत करनी पड़ती है। वह मेहनत माँ करती नहीं आमतौर पर, राजी नहीं होती। तो वह कहाँ अटकी रह जाती है फिर? ममता में ही…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

More from आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant