मुक्ति रोने से नहीं मिलती
प्रश्न: आचार्य जी, कभी-कभी बहुत गहरा भाव उठता है कि सब कुछ छोड़-छाड़ कर खड़ी हो जाऊँ, और ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाऊँ और कहूँ, “अब और नहीं।” कभी अनजाने में खड़ी भी हो जाती हूँ, फ़िर ठिठक जाती हूँ। आचार्य जी, ये ज्ञान, विज्ञान, कर्म, मुझे कुछ समझ नहीं आता, और मैं समझना भी नहीं चाहती शायद। बस यही ग़हरा भाव है कि आपके चरणों में गिरकर बिलख-बिलख कर रो लूँ, और बस रोती रहूँ।