मुक्ति और लापरवाही
श्रोता १: आचार्य जी, अभी पहला सूत्र था “बंधनमुक्त”। इस मनोभाव की वजह से, अगर ये मनोभाव धीरे-धीरे हमारे अन्दर आ रहा है तो क्या हमारा व्यवहार थोड़ा घुमक्कड़ जैसा नहीं हो जाएगा? कि हम किसी चीज़ की परवाह नहीं करेंगे बिल्कुल, हर चीज को हलके लेते जाएँगे, चाहे फिर जीवन में वो कोई भी प्रसंग हो या हमारी जीविका से सम्बंधित हो, या हमारे सम्बन्ध से सम्बंधित हो। बंधन तो फिर हर जगह ही दिखाई देगा ओर दिखता ही है, तो क्या मैं एक घुमक्कड़ व्यक्ति नहीं हो जाऊँगा?