मुक्ति — एक अनोखी मृत्यु!

मुक्ति — एक अनोखी मृत्यु!

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, शुरुआत में आपने एक बात कही थी कि हम सब की जो शुरुआत है वो एक बिंदु मात्र से हुई है और वैसा ही कुछ वैज्ञानिक भी कहते हैं कि शुरुआत बिग-बैंग से हुई थी। तो क्या अध्यात्म में जो आंतरिक जगत की बात है और ये जो मैटर (पदार्थ) की बात है, वो कहीं-न-कहीं जुड़ी हुई हैं इस सन्दर्भ में?

आचार्य प्रशांत: नहीं। विज्ञान जिस बिग-बैंग की बात करता है वो पूरे तरीके से एक भौतिक घटना है। विज्ञान के अनुसार जहाँ से ये सारा पदार्थ आया वो स्वयं भी पदार्थ ही है। वो किसी अन्य डायमेंशन , आयाम में थोड़े ही है। बिग-बैंग ये थोड़े ही कहता है कि किसी अन्य डायमेंशन से अवतरित हुआ था उस क्षण में पदार्थ। विज्ञान शुरुआत ही वहाँ से करता है जहाँ पदार्थ है और फिर कोई घटना घटती है, कोई प्रक्रिया होती है और एक बहुत बड़ा विस्फोट है जिससे फिर धीरे-धीरे करके जैसा हम ब्रह्मांड को जानते हैं उसका निर्माण होता है।

जबकि अध्यात्म जिस बिंदु की बात कर रहा है वो बिंदु भौतिक नहीं है। अध्यात्म जब कह रहा है कि ‘बिंदु से ही सारा संसार आया है’, तो वो बिंदु भौतिक नहीं है। विज्ञान जब कह रहा है कि, ‘बिंदु से संसार आया है’ तो वो बिंदु भौतिक है। इसीलिए विज्ञान बिलकुल मूक हो जाता है जब पूछा जाता है कि, “बिग-बैंग से पहले क्या था?” मूक इसलिए होना पड़ता है क्योंकि समय की शुरुआत ही बिग-बैंग से है। जब समय की शुरुआत ही बिग-बैंग से है तो ये प्रश्न ही विचित्र पड़ जाता है कि बिग-बैंग से पहले क्या था।

बिग-बैंग से पहले जो था वो समय के पार का था, और जो समय के पार का है वो भौतिक नहीं हो सकता। तो अब विज्ञान जवाब क्या दे? समय की शुरुआत ही कहाँ से हो रही है? बिग-बैंग से न। वहीं से घड़ी का काँटा सरकना शुरू होता है। और अब आप पूछ लें किसी वैज्ञानिक से कि ‘उससे पहले की भी तो बात बताओ? उससे पहले क्या था? या वही मूल सत्य है?’ वो चुप हो जाएगा। कहेगा, “उससे पहले की बात ही नहीं पूछी जा सकती, उससे पहले कुछ था ही नहीं तो क्या बताएँ?”

लेकिन ये जो चीज़ है ‘कुछ ना होना’, ये विज्ञान के क्षेत्र से बाहर की है। विज्ञान का क्षेत्र है मात्र वो जहाँ कुछ है। ‘है’ माने क्या हो सकता है? विज्ञान। विज्ञान तो आँखों से ही देखेगा, मन से ही सोचेगा तो वो किसकी उपस्थिति का संज्ञान ले सकता है? पदार्थ, मटेरियल की। जहाँ तक मटेरियल है वहाँ तक विज्ञान है। पर मटेरियल शुरू होने से पहले क्या था? विज्ञान वहाँ एकदम चुप हो जाएगा। ये चीज़ ही पाठ्यक्रम से बाहर की है।

हाँ, पदार्थ के कैसे भी रूप हों, उनका अनुसंधान विज्ञान ज़रूर करेगा; करना चाहिए। यही तो विज्ञान का काम है कि पदार्थ के अलग-अलग रूप हों प्रकार हों, उनकी खोज करो। पर उस जगह, उस अवस्था के बारे में क्या बोले विज्ञान जहाँ पदार्थ ही…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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