मीडिया कैसी खुराक दे रहा है मन को?

अखबार और टी.वी. क्या है ये समझ लेना काफी है। कोई नियम बनाने की विशेष ज़रूरत नहीं है। देखो, आसपास के अपने समाज को देखो। जो ये सड़क पर लोग चल रहे हैं, इनको देखो। जो ये सड़क किनारे होर्डिंग लगे हुए हैं, इनको देखो। अखबार किसके लिए छपता है? जो तुम्हारा आम आदमी है, वो लोभी है, वो डरा हुआ है, वो शक्की है। ऐसे व्यक्ति के लिए जो अखबार छपेगा उसमें क्या भरा हुआ होगा?

क्या उसमें ऐसा कुछ भरा होगा जो मन को शांत करता हो? जो तुम्हें प्रेम की ओर ले जाता हो? या उसमें वही सब खबरे होंगी जो एक शक्की और लालची मन को पसंद आएंगी?

एक डरा हुआ मन लगातार संदेह करना चाहता है। अब टी.वी. चैनल के लिए और अखबार के लिए बहुत आवश्यक है कि वो तुम्हारे संदेह को हवा देते रहे।

अखबार में, टी.वी. में होते हैं विज्ञापन। जो विज्ञापन दाता है उसकी एक ही इच्छा है कि कुछ भी करके वो अपना माल बेच ले। और जो अपना माल ही बेचना चाहता है वो तुम्हारे भीतर कुछ भी करके लोभ उठाना चाहेगा। वो तुम्हारी वृत्तियों को हवा देगा, वो तुम्हारी पशुता को जागृत करेगा कि किसी तरह तुम उसकी तरफ आकर्षित हो जाओ। हम जहाँ पर खड़े हैं, हमारी जैसी स्थिति है, हम तो पहले ही संदेहों से घिरे हुए हैं, हम तो यूं ही लगातार दुविधाओं से घिरे हुए हैं। मन में लगातार अनिश्चय ही डोलता रहता है, मन लगातार वस्तुओं के पीछे भागता रहता है, व्यर्थ चर्चा में उलझा रहता है और जो तुम्हारा लोकप्रिय मीडिया है वो उन्हीं का शोषण करता है, वैसे ही विचारों का। उठाओ अखबार, पर फिर तुम में ये विवेक होना चाहिए कि अखबार में क्या पढ़ने योग्य है और क्या नहीं है।

अखबार व्यवसाय है। उसे अखबार बेचना है और विज्ञापन दाता जुटाने हैं। जानते हो अखबार कैसे चलता है?

अखबार चलता है करोड़ों के विज्ञापनों से। वो खबर तुमको अखबार सिर्फ इसलिए देता है ताकि तुम विज्ञापन देख सको। अखबार तुम तक पहुँचाया ही इसलिए जा रहा है ताकि तुम्हारी जेब से विज्ञापन दाता पैसा निकलवा सके, ताकि तुम उसका माल ख़रीद सको।

अखबार की नब्बे प्रतिशत आमदनी होती है विज्ञापनों से। इस कारण वो भरा हुआ रहेगा विज्ञापन से, वो आ ही तुम तक इसलिए रहा है ताकि तुम्हारी जेब खाली करा सके, ताकि तुम्हारे मन पर कब्ज़ा कर सके, ताकि तुम्हारे मन में लालच उठा सके।

अखबार तुम्हारे घर में घुसी हुई बाज़ार है।

तुम क्या सोचते हो तुम्हें टी.वी. सीरियल दिखाया जा रहा है? तुम गलत सोच रहे हो, टी.वी. सीरियल के माध्यम से विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं। ये बाज़ार है। तुम क्या सोचते हो तुम्हें क्रिकेट मैच दिखाया जा रहा है? गलत सोच रहे हो। तुम्हें मैच के माध्यम से विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं। इसी कारण बहुत…

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org

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