मित्रता बेशर्त होती है

आचार्य प्रशांत: राहुल का सवाल है कि क्या संबंधो में कोई आशा रखनी चाहिए? मित्रता के सम्बन्ध की खासतौर पर बात की है। नहीं, कभी भी नहीं।

आशा का, अपेक्षा का, अर्थ होता है व्यापार। मैंने तुम्हें दस रूपए दिए हैं, अब मेरी अपेक्षा है कि तुम मेरी सेवा करोगे या तुम मुझे फलाने किस्म का माल दोगे। प्रेम बेशर्त होता है। प्रेम में कोई शर्त नहीं रखी जाती। मित्रता में अगर शर्तें हैं कि अगर तुम मेरे दोस्त हो तो मेरे लिए ये सब करोगे और अगर नहीं करते हो तो मेरे दोस्त नहीं, तो समझ लेना कि ये मित्रता नहीं है, मामला कुछ और है।‘मेरे लिए यह सब कुछ कर नहीं तो तू मेरा बेटा नहीं’,‘फ़लाने जात की लड़की से शादी कर ली तो मेरे घर में मत रहना’, तो जान लो कि ये प्रेम नहीं है, मामला कुछ और है। ‘तू मेरी प्यारी बिटिया है, पर अगर घर से भागी तो ऑनर किलिंग हो जाएगी’।(सभी श्रोतागण हँसते हैं)

और याद रखना कि पड़ोसी नहीं मारते, बाप और भाई ही मारते हैं इन ऑनर किलिंग के किस्सों में। तो समझ लेना कि ये प्रेम नहीं था, मामला कुछ और ही था हमेशा से। हो सकता है कि शारीरिक तरीकों से कोई तुम्हारी जान न ले, लेकिन दूसरे तरीकों से तुम्हारी जान ले लेगा।

प्रेम अपेक्षाएँ नहीं रखता। प्रेम मांगता नहीं है। समझ में आ रही है बात?

प्रश्नकर्ता: सर, एक बार आपने बताया था कि आप जिससे जितना प्यार करते हो, उससे उतनी नफरत करते हो। और हमें HIDP क्लास में बताया गया है कि हमको वही काम करना चाहिए जिससे हमको प्रेम हो। तो सर प्यार और नफरत एक साथ, ये सब कौम्प्लेक्स हो गया है। क्या मतलब है इसका?

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org