मार्क्स, पेरियार, भगतसिंह की नास्तिकता
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आदमी को, धर्म को हमेशा सफाई की ज़रूरत पड़ती रही है। रिफॉर्म्स आवश्यक रहे हैं। क्रांतियाँ और सुधार हमें चाहिए होते हैं।
बुद्ध और महावीर क्या कर रहे थे?
वैदिक धर्म का पुनरुद्धार ही तो कर रहे थे? जगा ही तो रहे थे?
उन्होंने कहा उपनिषदों की जो वाणी है, वो लालची, लोभी कुछ पंडितों ने बड़ी खराब कर दी, अब वो वेदों का हवाला देकर के अपने न्यस्त स्वार्थों की पूर्ति कर रहे हैं ब्राह्मण लोग तो उन्होंने कहा नहीं देखो सुधार करना पड़ेगा।
जो लोग गड़बड़ कर रहे थे, बुद्ध-महावीर उनके खिलाफ़ थे न?
उपनिषदों के खिलाफ़ थोड़े ही थे!
बुद्ध की जो बात है, वो उपनिषदों के विरुद्ध है क्या?
शत प्रतिशत मेल खाती है, शब्दों का अंतर है बस।
इसी तरह से और आगे आ जाओ,
आचार्य शंकर क्या कर रहे थे?
बुद्ध अपने पीछे जो पंथ छोड़ कर गए, हज़ार साल बीतते-बीतते मलिन हो गया। तो जैसे बुद्ध को सफाई करनी पड़ी थी वैदिक धर्म की वैसे हीं फ़िर आचार्य शंकर को आकर सफ़ाई करनी पड़ी — बौद्ध धर्म की।
जो भी बात एक समय पर नई, ताजी और जीवनदायी होती है, प्राणों से ओत-प्रोत होती है, वो कालांतर में गंदी हो जाती है क्योंकि सत्य कोई बात तो होता नहीं। सत्य को तुम बात बनाओगे, समय उसको धूमिल कर देगा।
थोड़ा और आगे बढ़ो उसके बाद, बारहवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी तक जो पूरा भक्ति कार्यक्रम चला वो और क्या था?
अधिकांश संत जो भक्ति मार्ग से जुड़े हुए हैं, जो अग्रणी रहे उसमें वो सब तथाकथित पिछड़े वर्ग और निचली जातियों से थे। वो भी एक सुधार कार्यक्रम था।
और सुधार कार्यक्रम का सबसे बड़ा उदाहरण, सबसे निकट का भी है वो है सिख पंथ कि जब पाया गया गंदगी ही गंदगी चारों ओर फैली हुई है तो नानक साहब से शुरू होकर के एक पूरी श्रृंखला आयी गुरुओं की, जिन्होंने कहा जो कुछ भी साफ है , सुंदर है उसको ले आओ, उसको संकलित करेंगे, धर्म का एक इनसाइक्लोपीडिया बनाएंगे, उन सबको रखेंगे जो बहुत बढ़िया वाली हैं। वो जिस भी दिशा से मिल रही हैं रखो! रखो!
उनको रख लो और बाकी सब कुछ नहीं रखेंगे।
वो जो ज़बरदस्त धार्मिक कोष बनाया गया उसका नाम है — आदि ग्रंथ या गुरु ग्रंथ साहिब।
तो ये सब चीज़ें समय — समय पर चाहिए होती हैं — सुधार, सफाई।
ये थोड़े ही चाहिए होता है कि तुम धर्म को ही उठा कर बाहर फेंक दो। आज इस तरह की हवा बह रही है कि — नहीं, नहीं, नहीं सफाई नहीं करेंगे धर्म को ही उठा कर फेंक देंगे।
सफाई चाहिए भाई! सफाई करो! और सफाई का हम सब के लिए जो सबसे सुलभ तरीका है वो ये है कि कम-से-कम अपनी निज़ी ज़िन्दगी में धर्म के जो विकृत रूप और अर्थ हैं उनको प्रवेश न करने दें और अगर प्रवेश कर गए हों तो उनको उठा कर के बाहर फेंक दें।
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