माया या प्रकृति को हमेशा स्त्रीलिंग में ही क्यों सम्बोधित किया जाता है?
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, वृत्ति को या उस शक्ति को जो हमें समझने नहीं देती या देखने नहीं देती या जिस कारण से फँसे हुए हैं, उसको जनरल (सामान्य), न्यूट्रल (उदासीन) भी रखा जा सकता था, जैसे ब्रह्म कहते हैं तो जनरल न्यूट्रल होता है। इंसान रूप में जो स्त्री है उसमें और माया में क्या समानता है जिसके कारण माया को महामाया भी कहते हैं?
आचार्य प्रशांत: दोनों जन्म देती हैं। जन्म देने की प्रक्रिया में जो दैहिक पुरुष होता है, उसकी अपेक्षा दैहिक स्त्री का दस गुना योगदान होता है। जन्म देने की प्रक्रिया में पुरुष का जो पूरा…