माया तो राम की ही दासी है
तव माय बस फिरऊॅं भुलाना ।
ताते मैं नहिं प्रभु पहिचाना ।।
~ संत तुलसीदास
आचार्य प्रशांत: “तव माय”, तुम्हारी माया। “बस फिरऊॅं भुलाना”, उसी के वश होकर भूला-भूला सा, भटका-भटका सा फिर रहा हूँ। “ताते”, उस कारण। “मैं नहिं प्रभु पहिचाना”, मैं प्रभु को पहचान नहीं पाया।
हास्य है भक्त का — विनोद। अपनी स्थिति का वर्णन किया जा रहा है, जाने प्रभु को ही…