माया क्या है? (पूरी बात)
प्रश्नकर्ता: नमस्ते सर, मेरा सवाल है कि माया क्या है?
आचार्य प्रशांत: तीन शब्दों में ही सब पूछ डाला। मैं तो अभी प्रतीक्षा कर रहा था कि प्रश्न शुरू होगा; शुरू होते ही ख़त्म हो गया।
माया क्या है? जो कुछ भी आपके लिए है, वो सब माया है; जो कुछ भी आपके अनुभव में आ सकता है। आप कहते हैं — मैंने जाना, मैंने देखा, मैंने सुना, मैंने छुआ, मेरे साथ हुआ; वो सब माया है। स्थूल विषय ही नहीं कि ये मेज़ है इसको मैंने ऐसे छू दिया (अपने सामने रखे मेज़ को स्पर्श करते हुए), सूक्ष्म विचार और कल्पनाएँ भी। आप जिस भी विषय का चिंतन कर सकते हैं, वो माया है।
माया का सम्बन्ध वास्तव में विषय से है ही नहीं क्योंकि अगर माया का सम्बन्ध विषयों से होता तो कुछ तो ऐसे विषय होते, कम-से-कम कोई एक तो ऐसा विषय होता जो माया के बाहर होता। अगर माया का सम्बन्ध विषयों से ही होता तो विषय और विषय में मायागत भेद भी होते। माया किसी विषय को नहीं छोड़ती क्योंकि उसे विषय से कुछ लेना-देना नहीं है, उसको लेना-देना है उससे जो विषय का अनुभवकर्ता है।
विषय समझते हैं? विषय माने क्या? जो कुछ भी आपके सामने है, आपके अनुभव का ऑब्जेक्ट (वस्तु)। मैं इस मेज़ पर हाथ रखकर के बैठा हूँ, ये विषय है। आप मुझे देख पा रहे हैं, मैं आपकी दृष्टि का विषय हूँ। तो सब विषयों के अनुभोक्ता तो हम ही हैं न? जो कुछ भी हमें प्रतीत हो रहा है, सब माया है।
वो क्यों माया है? क्योंकि उसमें कोई बड़ी बुराई है। जब हम कह रहे हैं कि सारे ही विषय माया हैं बिना किसी अपवाद के — नहीं अंतर पड़ता है कि कौनसा…