माया का नाश कैसे हो?

आप खुश हो जाते हो कि मिटी तृष्णा, मिटी वासना, जो लक्ष्य किया था वो मिल गया और आपको ये नहीं पता होता कि जो मिला है वो अपने मिलने के कारण ही और भूख पैदा करेगा।

माया का अर्थ है वो इच्छाएँ जो तुम्हें ये भ्रम देती हैं कि वो कभी भी पूरी हो सकती हैं, तो तुम इस भ्रम में हो कि पूरी हो जाएगी, तृप्ति मिल जाएगी; तुम ये नहीं समझ पाते कि वो यदि पूरी हुई तो उसके पीछे चार और खड़ी है।

जो हमारी आम सांसारिक चेतना है जिसमें हम जीते है उसमें इच्छाएँ बुरी थोड़ी लगती है, उसमें तो इच्छाएँ आकृष्ट करती है, लोभित करती है। माया ध्यान से देखने मात्र से नष्ट हो जाती है, धयान से देखोगे कैसे? पिट जो रहा है वो शराबी है अब वो कोशिश भी बहुत कर रहा है ध्यान से देखने की, उसे दिखेगा क्या? एक ही साधन है मुक्ति का कि सारा नशा उतर जाए।

ध्यान से देखने से माया नहीं नष्ट होती, ध्यान से देखने से तुम्हारी आत्मघाती प्रवृत्ति रुक जाती है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org