माफ़ करने का क्या अर्थ है?

क्षमा तो साधना का एक अंग है। क्षमा, आर्जव, सहिष्णुता, ये साधना के अंग हैं। और साधना का जो भी अंग होता है, वो इसलिए होता है कि उससे अहंकार गिर सके।

साधना इसलिए होती है, ताकि मन साफ़ रहे और अहंकार गिर सके।

कम हो सके। पर जिस रूप में हमें क्षमा से परिचित कराया गया है, उससे क्षमा अहंकार गिराती नहीं है और बड़ा देती है। कैसे? हमसे कहा गया है कि “क्षमा का मतलब है कि दूसरे के अपराध को भूल जाओ। माफ़ कर दो।” पर यह तो तुमने मान ही रखा है न कि उसने अपराध किया? क्षमा करने में, तुम और बड़े हो गए। और यही हमसे कहा भी गया है कि ‘माफ़ करने में बड़ा ही बड़प्पन है।’ बड़प्पन किसका है? कौन है जो और बड़ा अनुभव करेगा? अहंकार ही तो है तुम्हारा।

अब क्षमा की जो पूरी परिकल्पना है, वो इसलिए है ताकि अहंकार कम हो सके। लेकिन हम जिस क्षमा को पकड़ कर बैठे हैं, वो तो अहंकार को और बड़ा देती है। हम कहते हैं, “जा तुझे माफ़ किया।” और जब भी कहा, “जा तुझे माफ़ किया”, तो कौन बड़ा हो गया? ‘मैं’। अब ‘मैं’ सिंहासन पर हूँ। मैं ऊँचे पायदान पर हूँ। तू टुच्चा। तू इसी काबिल कि तुझे माफ़ किया। तेरी हैसीयत क्या है? जा तुझे माफ़ किया। अरे तूने जो किया, तू उससे बेहतर कुछ कर ही नहीं सकता था। जा तुझे माफ़ किया। तू और करेगा क्या? तू तो है ही नालायक और कमीना। जा तुझे माफ़ किया। यह क्षमा ज़हरीली है, घातक।

यहाँ तक कि हमारे कविजन भी क्या बोल गए हैं कि “क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल होता।” वो नहीं जो विषहीन, दंतहीन, विनीत और सरल होता। हमसे कहा गया है कि “सिर्फ उस सांप को क्षमा शोभती है, जिसके…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org