मानसिकता का क्या अर्थ है?
--
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मानसिकता (मेंटालिटी) का क्या अर्थ है?
आचार्य प्रशांत: मानसिकता का अर्थ होता है- सोचने का एक बंधा हुआ तरीका। मानसिकता का क्या अर्थ होता है? सोचने का एक बंधा हुआ तरीका। मानसिकता कोई भी हो गलत है क्योंकि मानसिकता का अर्थ है कि मन मुक्त नहीं है। जो मन, मानसिकता में बंधा हुआ है, वो जान नहीं सकता। मान लीजिए मेरी मानसिकता ऐसी है कि मैं लड़कियों की अपेक्षा लड़कों का पक्ष लेता हूँ। अगर मेरी ये मानसिकता हो तो, वो अकेली वहाँ (अकेली बैठी विद्यार्थी की ओर इशारा करते हुए) बैठी है, वो प्रश्न पूछती है। क्या मैं ध्यान से उसका प्रश्न सुनूँगा? क्या ध्यान से उत्तर दूँगा? दे सकता हूँ? क्या हुआ मानसिकता से? गड़बड़ हो गई न। कोई भी मानसिकता गड़बड़ है। तुम मुझे कोई एक मानसिकता बता दो जो काम की हो? कोई भी मानसिकता, कितनी भी नैतिक लगती हो, वो जानने की दिशा में हमेशा एक बाधा हीं है।
कोई भी मानसिकता अच्छी नहीं है। हाँ, कुछ मानसिकता पे अच्छे-अच्छे कपड़े पहना दिए जाते हैं, उनको चमका दिया जाता है, उनको अच्छे-अच्छे सुंदर नाम दे दिए जाते हैं- ‘आध्यात्मिक’। तो तुमको लगता है कि शायद ये वाली मानसिकता बड़ी अच्छी है। पर कोई भी मानसिकता हो, वो यही बताती है कि तुम में चेतना का अभाव है, बुद्धि का अभाव है, नहीं तो मुझे मानसिकता क्यों चाहिए? आवश्यकता क्या है दो अलग-अलग विचारधाराओं या मानसिकताओं की- आध्यात्मिक और वैज्ञानिक जैसा कि आपने कहा। क्यों नहीं आध्यात्मिक और वैज्ञानिक मानसिकताएँ मिल सकती हैं? क्यों नहीं मैं आध्यात्मिक और वैज्ञानिक और बहुत कुछ और कुछ भी नहीं हो सकता हूँ? क्यों मन को एक मानसिकता की, एक रुझान की आवश्यकता है?
एक वैज्ञानिक है, अगर मैं सही समझ पा रहा हूँ वैज्ञानिक विचारधारा से जो तुम्हारा तातपर्य है। जो वैज्ञानिक है वो बस इतना देखता है कि- बाहर क्या चल रहा है पदार्थ के तल पर? उसका कोई संपर्क नहीं, कोई संबंध नहीं, किससे? देखने वाले से।
जो आध्यात्मिक है, वो घुसा हुआ है भीतर हीं भीतर, भीतर हीं भीतर। ‘ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या’। वो कहता है ये बाहर जितना है सब मिथ्या है, आत्म एकमात्र सच है। बैठा तुम्हारा शरीर है, सच आत्म है? मच्छर शरीर को काटते हैं, विचार मन को परेशान करते हैं, सत्य आत्मा है। अब आदमी बटेगा कि नहीं बटेगा? क्या एकमात्र सच्चाई आत्मा है तो शरीर का क्या करें? गड्ढे में डाल दो! मर जाओ! आत्मा हीं बन जाओ पूरे-पूरे! घूमो प्रेत बन के! एकमात्र सच्चाई तो आत्मा है तो घुमो प्रेत बन के। तो ये वाली मानसिकता हो कि ये वाली मानसिकता हो, दोनों सिर्फ खंडित करती हैं, दोनों सिर्फ टुकड़े हैं। कोई भी मानसिकता नहीं है तुम्हें बस ‘सच’ के साथ रहना है और सच किसी मानसिकता का मोहताज़ नहीं होता। सच, सच है, सच सिर्फ तुम्हारे देखने…