मानवता बड़ी कि धर्म?

ये लोग जो कहते हैं मानवता किसी भी धर्म से बढ़कर है, ये वास्तव में न तो धर्म को समझते हैं और न ही मानवता को समझते हैं।

मानव क्या है? उसके पास मूल्य कहाँ से आएँगे? उसे कैसे पता कि किस चीज़ को कितनी कीमत देनी है? मानव को अगर शिक्षित, दीक्षित न करो तो वह वास्तव में एक बुद्धि संपन्न पशु ही है। वास्तव में मानव के पास मानवता अपने आप आ ही नहीं सकती, उसके पास एक पाश्विक बुद्धिमत्ता जरुर आ सकती है।

मानवता यूँ ही नहीं आ जाती, इन्सान बनने के लिए एक विशिष्ट किस्म की शिक्षा की जरुरत होती है, वो शिक्षा अगर तुम नहीं दोगे मानव को तो वह पशु ही रहेगा। मानवता वादियों का ख्याल है कि वह शिक्षा अगर तुम नहीं भी दोगे मानव को तो भी उसके अंदर जीवन के मूल्य की शिक्षा अपने आप ही आ जाएगी। दया, करुणा, सत्य, अहिंसा, प्रेम ये प्राकृतिक मूल्य नहीं होते हैं। ये शिक्षा अगर बच्चे को नहीं दी तो वह एक बुद्धिमान जानवर बन कर रह जायेगा, इस विशिष्ट शिक्षा का नाम ही धर्म है, जो मानव में उच्चतर मूल्यों की स्थापना करती है।

मानव को मानव बनाता ही धर्म है, मानव में मानवता लाता ही धर्म है। जब धर्म के बिना मानवता आ ही नहीं सकती तो मानवता धर्म से बड़ी कैसे हो गई? धर्म तो मानवता का मूल्य है। बिना धर्म के मानवता नहीं होगी, बिना धर्म के सिर्फ पशुता होगी। इन्सान के मन से वही सब निकलेगा जो किसी पशु के मन से निकलता है, बस वह थोड़ा ज़्यादा बुद्धि संपन्न तरीके से निकलेगा।

मन तो मस्तिष्क पर आश्रित होता है और मस्तिष्क प्राकृतिक है और जो कुछ भी प्राकृतिक है उसका उद्देश्य बस अपनी सुरक्षा, अपना संवर्धन, अपना विस्तार होता है। धर्म न हो तो तुम्हारे न्यायालय काम नहीं कर सकते, सड़कों पर चारों ओर खून-खराबा होता नजर आएगा। धर्म न हो तो तुम्हें किसी के घर में घुसकर चोरी कर लेने से कौन रोकेगा?

अभी धर्म का इतना नाश नहीं हुआ है दुनिया में कि जो पूरा माहौल है वही धर्म से रिक्त हो गया हो। लोगों को पता हो या न पता हो लोग धार्मिक आज भी हैं, यहाँ तक कि जो अपने आप को नास्तिक या अनीश्वरवादी मानते हैं उनमें भी धर्म बैठा हुआ। भले ही वे मौखिक तौर पर धर्म की उपेक्षा कर देते हो लेकिन धर्म के जो प्रभाव है वह पूरे तरीके से उनके चरित्र में मौजूद है।

नैतिकता धर्म के पेड़ का फल होती है। ज्यादातर लोग जो अपने आप को नास्तिक बोलते हैं, वे वास्तव में बस अपने झूठ और अहंकार को छिपाने के लिए आध्यात्मिक ग्रंथों की ओर नहीं जाते। उससे उनको कही ज्यादा आसान लगता है कि दो-चार ऊपर-ऊपर के मूल्य पकड़ लो और कह दो कि नहीं मैं धर्म को मानता नहीं लेकिन मैं मानवतावादी, नैतिकतावादी हूँ। बिना अध्यात्म के आप न मानवतावादी हो सकते हैं और न नैतिकतावादी हो सकते हैं।

धर्म का वास्तविक अर्थ है सच जानने की कोशिश करना, अपनी पीड़ा को स्वीकारना, अपने बन्धनों को देखना, मुक्ति की कोशिश करना, जीवन भर ईमानदारी से मुक्ति का प्रयत्न करते चलना।

दो-चार पीढ़ियां अगर बीत जाए बिना किसी धार्मिक शिक्षा के तो फिर देखना की दुनिया में कितने अच्छे लोग बचते हैं। बचो इस मज़हब से जिसको इंसानियत कहते हैं, यह बहुत झूठा और खोखला मज़हब है। खेद की बात है की ज्यादातर अहंकारियों को, अज्ञानियों को यही मज़हब प्यारा हो गया है।

पूरा वीडियो यहाँ देखें।

आचार्य प्रशांत के विषय में जानने, और संस्था से लाभान्वित होने हेतु आपका स्वागत है

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org