माध्यम मंज़िल नहीं
आचार्य प्रशांत: (प्रश्न पढ़ते हुए) सर, जब भी आपको सुनता हूँ, जितनी भी देर आपके साथ होता हूँ तो ऐसा लगता है मेरे भीतर एक ऊर्जा है। कैसे यह ऊर्जा हर समय बनी रहे? कैसे रोकूँ?
तुम कहते हो कि जब यहाँ होते हो, मेरे साथ, मेरे सामने, तो ऊर्जा होती है। अगर नहीं होते हो मेरे साथ, मेरे सामने, तो ऊर्जा नहीं होती है। तो बात बहुत सीधी है। मैं तुमसे पूछता हूँ कि ऐसा कोई भी बिंदु, समय, स्थान आने क्यों देते हो जब मेरे सामने नहीं हो? कौन यह विचार…