मात्र उनके लिए जो ऊँचा उठना चाहते हों
आचार्य प्रशांत: पूरे अस्तित्व की जहाँ से शुरुआत होती है। इस दुनिया में ही जो बिल्कुल प्रथम बिंदु है, ये याद रखना है कि उनसे भी श्रेष्ठ कोई है। तो पहले तो मन को ऊँचा-ऊँचा-ऊँचा, और ऊँचा, और ऊँचा उठाओ, अधिकतम और उच्चतम, जहाँ तक मन को ले जा सकते हो, ले जाओ और फिर अपने-आपको याद दिलाओ कि अब जब यहाँ पर आकर मैं ठहर गया इसके पार जो है वो सत्य है। सत्य मन की उड़ान या मन की ऊँची कल्पना में नहीं है। उच्चतम कल्पना, उच्चतम सिद्धांत…