मांगना — भिन्नता का संकेत
माँगना हमारी नियति है क्योंकि हमने पृथकता बैठा ली है।
जैसे ही किसी दूसरे का घर हो गया, वैसे ही आपको अनुमति मांगनी पड़ेगी, और दूसरे का घर होकर रहेगा क्योंकि आपकी विशेष रूचि है अपना घर बनाने में। जो अपना घर बनाएगा, उसका दंड ही यही है कि उसे दूसरों के घर में घुसने के लिए अनुमति लेनी पड़ेगी। जो बहुत सारे ‘अपने’ खड़े करेगा, उसका दंड यही है कि बाकी दुनिया उसके लिए पराई हो जाएगी। जो भी अपने परिवार से बड़ा आसक्त रहेगा, उसकी सजा ही यही है कि बाकी दुनिया से वो कटता जाएगा, और दूर हो जायेगा।
‘मांगन मरण समान’, ठीक इसीलिए है क्योंकि जीवन एक है, और मांगने का अर्थ है- पृथकता, कटना, असंपृक्त होना। मांगोगे तो तभी न जब अलग होने का भाव होगा। तुम अलग हुए नहीं कि जीवन से अलग हो गये, और किसी से अलग नहीं हुआ जाता। जीवन ही है जिससे अलग हो जाते हो। या तो तुम समूचे हो और पूरे से जुड़े हुए हो, या जीवन से ही कटे हुए हो। ये मत सोचना कि तुम अपने पड़ोसी से कटे गए हो, तुम जीवन से ही कट गये हो।
जहाँ कुछ भी व्यक्तिगत आया, जहाँ कहीं भी ‘मेरा’ आया, वहाँ ही मरण हुआ।
इसीलिए मांगन मरण सामान है। भिक्षु का माँगना, माँगना है ही नहीं। भिक्षु का माँगना ऐसा ही है जैसे कि कोई पशु घास चर रहा हो। वो मांग नहीं रहा है।
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