माँ-बाप को कैसे समझाएँ?

प्रश्नकर्ता(प्र): सर, सेशन के बाद ये सभी बातें हम तो समझ रहे हैं कि हमें क्या चाहिए, जागरुकता बढ़ गयी है, हम समझ सकते हैं लेकिन माता -पिता को कैसे समझाएँ? वो हमारा भला ही चाहते हैं।

आचार्य प्रशांत (आचार्य): भला चाहने भर से नहीं होता। भला तो दुनिया में हर माँ-बाप ने चाहा है, पर देखो संतानों को, भला चाह-चाह कर कैसी हो गयी है दुनिया। मैं खुद नासमझ हूँ, मैं भला चाहूँगा भी तो भी मैं खुद बुरा ही कर दूँगा। मुझे नहीं आती है ब्रेन-सर्जरी, मैंने शरीर के, मन के विज्ञान को कुछ जाना नहीं है, मुझे वैसी कभी कोई सही शिक्षा ही नहीं मिली, और मैं अपनी बेटी के ब्रेन का ऑपरेशन करूँ, मैं चाहूँगा यही कि मैं अच्छा ऑपरेशन करूँ, पर मैं अपनी बेटी को मार डालूँगा क्योंकि मुझे ब्रेन की कोई समझ नहीं है। चाहने भर से क्या होता है ? देखो ना तुम भी तो अपने दोस्तों का भला चाहते हो। चल पीने चलते हैं, ये तुम भला ही तो चाह रहे हो। तुम्हें लग रहा है कि ये उदास है और उदासी का इलाज है, शराब। तुमने भला ही तो चाहा है। पर अपनी नासमझी में तुम भला भी चाहोगे, तो बुरा ही करोगे। और यदि वास्तव में तुम्हें प्रेम है किसी से, तो तुम उसकी नासमझी में सहायक नहीं बनोगे। तुम अड़ जाओगे। तुम कहोगे, ‘आप जो कह रहे हैं, वो बात समझदारी की नहीं है, आप मुद्दे को ठीक से देख नहीं रहे हैं। आईये, बैठिये मेरे साथ, मैं भी जवान हूँ, बात करेंगे। हम समझेंगे कि बात क्या है’। तुम डर नहीं जाओगी, ना तुम ये कह दोगी कि बड़ों की आज्ञा है तो तोड़ कैसे दें।

माँ-बाप बाद में है, पहले तो व्यक्ति हैं, इंसान हैं। और इंसान दो ही तरीके के होते हैं; जिन्होंने मन को सुलझा…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org