माँस खाना अपराध है समूची पृथ्वी के विरुद्ध

आज के समय में माँस का भक्षण किसी का निजी मसला नहीं है, यह कोई व्यक्तिगत बात नहीं है, हम कुछ भी खाएँ इससे दूसरों को क्या मतलब — ना! जो आदमी माँस खा रहा है, वह इस पूरे ग्रह का नाश कर रहा है। तो सबसे पहले तो यह तर्क खत्म होना चाहिए कि कौन क्या खा रहा है यह उसका व्यक्तिगत मसला है। नहीं! और इसे बड़े लिबरल तरीके से कहा जाता है कि, “मुझे इस बारे में क्यों परेशान होना चाहिए कि किसी की थाली में क्या है?” — आपको किसी की थाली में क्या है इसके बारे में परेशान होना होगा क्योंकि दूसरा जो खा रहा है उसका असर पूरी दुनिया पर, पूरे पर्यावरण पर और हर एक की ज़िंदगी पर पड़ रहा है। भोजन का आपका चुनाव आपका निजी मसला नहीं हो सकता।

माँस-भक्षण इस समय दुनिया की सबसे घातक बीमारी है। प्रकृति बर्बाद हो गई है माँस-भक्षण के कारण। क्लाइमेट चेंज का सबसे बड़ा कारण है माँस-भक्षण। लेकिन हममें इतनी साक्षरता भी तो नहीं है कि हमें यह सब वैज्ञानिक तथ्य पता हों। और मीडिया कभी खुलकर के यह बात सामने लाता नहीं है कि दुनिया तबाह हो रही है तो बस माँस की वजह से। इसके ऊपर एक-से-एक लिबरल बुद्धिजीवी लोग आ जाते हैं जो कहते हैं — नहीं, नहीं! खाना-पीना तो पर्सनल बात है — फ्रीडम ऑफ फूड। वह और अनपढ़ हैं, कहने को तो उनको बुद्धिजीवी कहते हैं पर बिलकुल ही निरक्षर हैं। माँस और डेयरी, यह दो उद्योग इस पृथ्वी को मारे डाल रहे हैं। करोड़ों जानें जा रही हैं — मैं इंसानों की बात कर रहा हूँ — और जाने वाली हैं सिर्फ माँस-भक्षण के कारण। मैं पशुओं की जानों की बात नहीं कर रहा, मैं इंसानों की जानों की बात कर रहा हूँ।

पशु तो हम रोज़ाना कई अरब काटते हैं। आठ अरब लोग हैं, वह मिलकर कई अरब पशु काटते हैं। तो पशुओं के प्रति तुममें संवेदना चलो नहीं भी है तो भी इंसानों का तो ख्याल कर लो, अपने बच्चों का तो ख्याल कर लो। पृथ्वी, पृथ्वी की नदियाँ, पहाड़, पृथ्वी का पर्यावरण, हवा, तापमान, सब समुद्र तबाह हो गए सिर्फ इसलिए क्योंकि आदमी को माँस खाना है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org