माँस के डब्बे के पीछे की कहानी नहीं जानते?

सौ साल पहले आप माँस खाते थे तो आपको दिखाई पड़ता था जानवर का वध किया जा रहा है और जानवर खड़ा है गला कट रहा है।

अभी बहुत सुंदर डिब्बा आ जाता है पैकेज्ड मीट का और वो आप ऑनलाइन आर्डर कर सकते हैं, और वो बड़ा सुन्दर लगता है। पीछे की बर्बरता छुपा दी गई, पहले दिखती तो थी।

अब चाहे तुम जूते का डिब्बा मँगाओ या माँस का, वो एक से दिखते हैं।

बहुत साफ़-सुथरा मामला होगा। बड़ी सुव्यवस्थित दुकान होगी उस पर लिखा होगा फ्राइड चिकन और वहाँ साफ़ कपड़ों में कर्मचारी आदि घूम रहे होंगे।

आपको उस वक्त ख्याल भी आता है क्या? असली धंधा क्या है?

आप चिप्स खा रहे हो चिप्स। सब अच्छा ही अच्छा है। क्या ये प्रकट है, उस चिप्स के कारण हज़ारों आरंगुटन मारे गए हैं, आप कहोगे, अरे, ये तो आलू के चिप्स हैं, आरंगुटन का मांस थोड़ी है।

ये प्रकट थोड़ी है आलू के चिप्स जिस पाम-ऑयल से बन रहे हैं, उस पाम-ऑयल के लिए जंगल काटे गए और उन जंगलो में आरंगुटन रहता था वो ख़त्म ही हो गया, वो बचा ही नहीं।

आप तो कह रहे हो, मैं तो चिप्स खा रहा हूँ। अब प्रकट थोड़ी है वो चिप्स नहीं है, आरंगुटन का खून है।

तो ये फ़र्क है, आज के सौ साल पहले में और आज में।

आज सब कुछ ऊपर-ऊपर से चिकना-चुपड़ा है। आपको दिखाया ही नहीं जा रहा आप कितना क्रूर, बर्बर और कितना घटिया जीवन जी रहे हो।

तुम्हारी एक-एक साँस पर किसी बाहरी ताकत का कब्ज़ा है, और तुम्हें पता भी नहीं, वो तुम्हें लूट रही है ।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org