माँस का त्याग कैसे करें

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, क्या माँस-मदिरा, तंबाकू आदि का यदा-कदा सेवन करना गलत है? मैंने सुना है रामकृष्ण, विवेकानंद, जीज़स आदि मांसाहारी थे, और बुद्ध ने भी प्राकृतिक मौत से मरे जानवरों का माँस खाने के प्रति आपत्ति नहीं की है। तो क्या माँसाहार अध्यात्म में बाधक है? यदि बाधक है तो मुक्ति का उपाय बताएँ।

आचार्य प्रशांत: कल मैं पढ़ रहा था पुल्लेला गोपीचंद की बैडमिंटन अकैडमी के बारे में। तो जो लेख था, उसने कहा कि कई अच्छे खिलाड़ी जैसे साइना नेहवाल, पुरुषों में पी. कश्यप आदि जब गोपीचंद के पास आए थे तब वो शाकाहारी थे, और भी कई नाम थे जो जब आए थे तो शाकाहारी थे। गोपीचंद ने उनको तर्क देकर, समझाकर, आदेश देकर माँस खिलाया, और गोपीचंद के पास तर्क हैं, शायद साक्ष्य भी हों, प्रमाण भी हों कि माँस खाने से लाभ होता है। उन्होंने कहा — “प्रोटीन तो मिलता ही मिलता है, लोहे की भी पूर्ति होती है। तैयारी करते समय जो भीतर की माँसपेशियाँ फटती हैं, उनकी जल्द-से-जल्द मरम्मत हो जाए, इसके लिए आपको माँस चाहिए।” वह सब बातें ठीक होंगी। होंगी ही, क्योंकि उनका लाभ शायद खिलाड़ियों को मिला है।

तो पहली बात तो हमें ये स्वीकार करनी होगी कि यह जो शरीर है, इसे माँस से कोई आपत्ति नहीं है। जो अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि माँसाहार शरीर के लिए ही बुरा है, ऐसी कोई बात वास्तव में है नहीं। आप उन देशों की ओर देखें, उन समुदायों की ओर देखें जो करीब-करीब शत-प्रतिशत माँसाहारी हैं। आप पाएंगे कि वहाँ के लोगों के शरीर लंबे हैं, चौड़े हैं, सुदृढ़ हैं, चमकती हुई उनकी त्वचा है, दमकते हुए उनके चेहरे हैं और वो रोज़ ही माँस खाते हैं। माँस ही…

--

--

आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org