माँसाहार भोजन नहीं

माँसाहार कोई भोजन नहीं होता, वो किसी का माँस है, किसी का शरीर है। उसको आप भोजन तब ही बोल सकते हैं, जब आपने किसी प्राणी से मुहब्बत की ही न हो।

तुम नॉन-वेज फ़ूड क्यों बोलते हो, सीधे जानवर का माँस क्यों नहीं बोलते? क्योंकि ऐसे बोलोगे तो तुम्हारी बर्बरता, तुम्हारी क्रूरता साफ़ सामने आ जाएगी।

क्यों बोलते हो कि आज नॉन-वेज खाने का मन है, सीधे बोलो न कि आज किसी की जान लेने का मन है। पर ये बात बोलोगे तो तुम्हें खुद ही अच्छा नहीं लगेगा।

पशुओं से क्या, इंसानों से भी प्रेम नहीं है। तुम्हें कभी किसी से भी सच्ची मुहब्बत हो जाए, तब तुम उसका माँस नहीं खा पाओगे। मुहब्बत छोड़ दो, तुम्हें मोह भी हो जाएगा तो तुम्हारे लिए माँस खाना मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए दुनिया का कोई भी देश हो, वहाँ स्त्रियाँ माँस कम खाती हैं, भले ही वो प्रेम जानती हो या नहीं पर मोह-ममता तो जानती हैं। मोह-ममता तक में इतनी ताक़त होती है कि तुम्हें माँस नहीं खाने देती, तो सोचो प्रेम में कितनी ताक़त होगी।

कभी किसी जानवर से दोस्ती कर के देखो, फिर किसी भी जानवर को मारना तुम्हारे लिए असंभव हो जाएगा। किसी एक जानवर से दोस्ती कर लो।

अपनी पीड़ा पर तो सब ही रो लेते हैं, इंसान तुम तब हुए जब तुम दूसरों की पीड़ा पर भी रो सको।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org