माँसाहार के साथ चैन नहीं पाओगे
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, यह जो जानवरों को काटते हैं, खाते हैं, पिंजरों में बंद करते हैं, भर-भर के ट्रकों में ले जा रहे होते हैं और पता ही होता है कि कुछ समय में इन्हें मारकर खा जाएँगे, मेरा सवाल है कि क्या प्राकृतिक आपदाएँ, भूकम्प वगैरह, इसी कारण आते हैं?
आचार्य प्रशांत: उस से सम्बन्धित हो न हो, यह पीछे की बात है, लेकिन जब तक इंसान का चित्त ऐसा है कि सभ्यता के बीच, शहर के बीच, संस्कृति के बीच, क़त्लखाने चल रहे…