माँसाहार के साथ चैन नहीं पाओगे

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, यह जो जानवरों को काटते हैं, खाते हैं, पिंजरों में बंद करते हैं, भर-भर के ट्रकों में ले जा रहे होते हैं और पता ही होता है कि कुछ समय में इन्हें मारकर खा जाएँगे, मेरा सवाल है कि क्या प्राकृतिक आपदाएँ, भूकम्प वगैरह, इसी कारण आते हैं?

आचार्य प्रशांत: उस से सम्बन्धित हो न हो, यह पीछे की बात है, लेकिन जब तक इंसान का चित्त ऐसा है कि सभ्यता के बीच, शहर के बीच, संस्कृति के बीच, क़त्लखाने चल रहे हैं, सड़कों के किनारे बूचड़खाने चल रहे हैं, फूलों के दुकान के पास, कपड़ों की दुकानों के पास, बच्चों के खिलौनौं की दुकानों के पास मुर्ग़े काटे जा रहे हैं, बकरे काटे जा रहे हैं, तब तक इंसान चैन से तो नहीं रह सकता। इस बात को पक्का समझ लीजिए कि अगर कोई एक पाप है जो मानवता पर भारी पड़ रहा है तो वो यही पाप है। बाकी सारे पाप इससे बहुत पीछे हैं।

इंसान ने बहुत पाप करे हैं, पर पापों में पाप वो है जो इंसान ने जानवरों और पक्षियों के साथ करा है, और रोज़ करे जा रहा है। आदमी के सारे गुनाहों की माफ़ी हो सकती है, पर एक निर्दोष जीव की हत्या की माफ़ी नहीं हो सकती है, वो भी एक आयोजित तरीक़े से। उसकी भी अपनी एक पूरी अर्थ-व्यवस्था चल रही है — बहुत बड़ा तंत्र है; एक सिस्टम है; एक इंडस्ट्री है। इसकी कोई माफ़ी नहीं मिलेगी, आप कुछ कर लीजिए, आप अध्यात्म पढ़ लीजिए, आप दुनिया को राम- कथा में डुबो दीजिए। आप साइंस का, तकनीक का, मेडिसिन का विकास कर लीजिए, आप ज्ञान के नए-नए द्वार खोल दीजिए, जिस दिन तक यह मुर्दों भरी गाड़ियाँ सड़कों पर दौड़ती रहेंगी, उस दिन तक किसी को चैन नहीं मिलना है।

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org