माँसाहार के साथ चैन नहीं पाओगे
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इंसान ने बहुत पाप करे हैं, पर पापों में पाप वो है जो इंसान ने जानवरों और पक्षियों के साथ करा है, और रोज़ करे जा रहा है। आदमी के सारे गुनाहों की माफ़ी हो सकती है, पर एक निर्दोष जीव की हत्या की माफ़ी नहीं हो सकती है, वो भी एक आयोजित तरीके से। उसकी भी अपनी एक पूरी अर्थ-व्यवस्था चल रही है — बहुत बड़ा तंत्र है; एक सिस्टम है; एक इंडस्ट्री है। इसकी कोई माफ़ी नहीं मिलेगी, आप कुछ कर लीजिए, आप अध्यात्म पढ़ लीजिए, आप दुनिया को राम-कथा में डुबो दीजिए। आप साइंस का, तकनीक का, मेडिसिन का विकास कर लीजिए, आप ज्ञान के नए-नए द्वार खोल दीजिए, जिस दिन तक यह मुर्गों भरी गाड़ियाँ सड़कों पर दौड़ती रहेंगी, उस दिन तक किसी को चैन नहीं मिलना है।
वो मौतें नाहक ही न जानें, सब कुछ जुड़ा हुआ है; हम सब एक हैं। जब किसी के भी साथ कुछ ऐसा होता है जो उसके लिए अनावश्यक पीड़ा का कारण बनता है, तो मात्र उसको नहीं दुःख होता, सबको दुःख होता है। वो दुःख होता है, हो सकता है आपको पता ना चलता हो, पर अपनेआप से पूछिए न कि आपको क्यों लगता है कि कई बार आप अकारण दुःखी हैं? लगता है न? आप अकारण ही नहीं दुःखी हैं, यह सब कुछ जो दुनिया में चल रहा है, आप उस कारण दुःखी हैं, कि क्योंकि जहाँ भी जो कुछ भी हो रहा है, नतीजा सबको भुगतना पड़ेगा। और दुनिया में इससे बड़ा पाप आज दूसरा नहीं हो रहा है। ठीक आज के दिन भी करोड़ों-अरबों जानवर कट रहे होंगे। मैंने जितना बोला, इतनी देर में हज़ारों गए। किसी पशु ने, किसी पक्षी ने कोई पाप नहीं करा है, वो हमसे, आपसे, कई ज़्यादा सीधे, सरल और निर्दोष हैं — और जब एक निर्दोष की हत्या होती है तो आसमान भी रोता है। आप कितने भी मंदिर, मस्जिद खड़े कर लीजिए, आपने जितने सतकर्म करने हैं वो कर लीजिए, आपको समाधि के जितने प्रयत्न करने हैं वो कर लीजिए, जब तक दुनिया से यह एक चीज़ नहीं रुकेगी, आप चैन नहीं पाएँगे — आपको पता भी नहीं चलेगा कि आप परेशान क्यों हो।
आप इसलिए परेशान हो क्योंकि बग़ल में वो चल रहा है और मैं इसमें यह भी कह रहा हूँ कि यह ज़रूरी नहीं है कि आप वो माँस खाते हों सक्रिय रूप से, आप खाते हो या ना खाते हों, असर आप पर भी पड़ना है — ठीक वैसे ही जैसे कि माहोल में धुआँ छोड़ा जाए तो आपने वो धुआँ छोड़ा या न छोड़ा हो, असर आप पर भी पड़ना है; हम सब जुड़े हुए हैं।
आप जो कुछ हैं, इसलिए हैं क्योंकि यह पूरा अस्तित्व वैसा है जैसा है। इसको दुःख पहुँचा करके, इसको तोड़के, पर्यावरण का नाश करके, आप क्या सोच रहे हैं कि आप बचे रह जाएँगे? यह जिसको हम वैश्विक तापमान कहते हैं, यह क्या लग रहा है कि यह सिर्फ़ बाहर का तापमान बढ़ेगा? बाहर का ही तापमान नहीं बढ़ेगा, आदमी का भी तापमान बढ़ेगा। सिर्फ़ पृथ्वी को ही बुखार नहीं आएगा, आदमी को भी ज्वर आएगा — आप भी गरम हो जाने हैं। दुनिया में…