माँसाहार का समर्थन — मूर्खता या बेईमानी? (भाग-1)

प्रश्नकर्ता १: मेरा ऐसा तर्क है कि माँसाहार शाकाहार दोनों ही प्रकृति के संतुलन हेतु आवश्यक हैं। आप कल्पना करें कि यदि पूरी मानव जाति शाकाहारी हो गई तो पानी में मछलियाँ कितनी ज़्यादा हो जाएँगी? और गाँव शहर में सूअर, बकरे-बकरी कितने ज़्यादा हो जाएँगे? कल्पना करना मुश्किल है।

प्रश्नकर्ता २: प्रकृति के चक्र का यह हिस्सा है कि हम जानवरों को मारें और आप कहते हैं कि क्लाइमेट चेंज का मुख्य कारण माँसाहार है लेकिन क्लाइमेट चेंज का मुख्य कारण हानिकारक गैसें हैं ना कि माँसाहार। आप यह कल्पना कर सकते हैं कि पृथ्वी कैसी नज़र आएगी अगर सभी शाकाहारी हो जाएँ? मंगल ग्रह की तरह पृथ्वी हो जाएगी, कोई पेड़ पौधा नहीं बचेगा, ऑक्सीजन नहीं बचेगी इसलिए माँसाहारी होना अत्यावश्यक है। आपको तर्कयुक्त और विज्ञानसम्मत बातें करनी चाहिए जैसे कि ज़ाकिर नायक करते हैं।

आचार्य प्रशांत: पृथ्वी पर जो ज़मीन का क्षेत्र है उसमें से करीब आधे पर खेती होती है। यह जिस भाग पर खेती होती है हम उसके बारे में दो चार चीज़ें समझते हैं, जो कि बहुत रोचक है।

बहुत ध्यान से सुनिएगा। यह सोच कर इधर-उधर मत हो जाइएगा कि यह तो भूगोल पढ़ाने लग गए, विज्ञान पढ़ाने लग गए, नहीं। ध्यान देंगे तो आपकी पूरी रुचि आगे तक इसमें बनी रहेगी।

जानते हो धरती के जिस भाग पर खेती होती है, उसका कितना हिस्सा इंसानों के खाने के लिए अन्न उपजाने में उपयोग होता है? अपने सवाल को आसान बनाए देता हूँ — मान लो धरती पर कुल सौ वर्ग मीटर क्षेत्र है, हंड्रेड स्क्वायर मीटर एरिया है जिस पर खेती…

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आचार्य प्रशान्त - Acharya Prashant

रचनाकार, वक्ता, वेदांत मर्मज्ञ, IIT-IIM अलुमनस व पूर्व सिविल सेवा अधिकारी | acharyaprashant.org